Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
भाषा
CASHBARB ASTI
ASSIPES
जाता है वह द्रव्यनिक्षेपका विषय न होगा किंतु यह व्यवहार लोक प्रसिद्ध है । सब लोग राजकार्यसे विमुख पुरुषों को भी राजा कह कर पुकारते हैं । इसी संबंधमें श्रीविद्यानंदिमहाराजने श्लोकवार्तिकमें इसप्रकार खुलासा किया है
नन्वनागतपरिणामविशेष प्रति गृहीताभिमुख्यं द्रव्यामितिद्रव्यलक्षणमयुक्तं गुणपर्ययवद् द्रव्यमित्ति तस्य सूत्रितत्वात् तदागमनविरोधादिति ? कश्चित् । सोअपे सूत्रार्थानभिज्ञः । पर्ययवद्रव्यापिति हि ई सूत्रकारेण वदता त्रिकालगोचरानंतकपभाविपरिणामाश्रयं द्रव्यमुक्तं । तच्च यदानागतपरिणामविशेषं है प्रत्यभिमुखं तदा वर्तमानपर्यायाक्रांत परित्यक्तपूर्वपर्यायं च निश्चीयतेऽन्यथाऽनागतपरिणामाभिमुख्यानुपपचेः। खरविषाणादिवत् । केवलं द्रव्यार्थप्रधानत्वेन वचनेऽनागतपरिणामाभिमुखमतीतपरिणामंवानपायिद्रव्यमिति निक्षेपप्रकरणे तथा द्रव्यलक्षणमुक्तं। अर्थात्-आगामी कालमें होनेवाली पर्यायको वर्तमान में मान लेना द्रव्य है यह जो द्रव्यका लक्षण किया है वह ठीक नहीं । गुण और पर्यायस्वरूप द्रव्य है यह
सूत्रकारने स्वयं द्रव्यका लक्षण कहा है इसलिये इस सूत्रकारके लक्षणसे विरुद्ध लक्षण करने पर आगम हूँ विरोध आता है ? सो ठीक नहीं । शंकाकारने सूत्रका अर्थ समझा ही नहीं क्योंकि पर्यायवाला द्रव्य है
यह कहनेसे सूत्रकारने भूत भविष्यत वर्तमान तीनों कालकी क्रमसे होनेवाली अनंती पर्यायोंका आधार
द्रव्य बतलाया है इसलिये तीनों कालकी पर्यायोंका धारक द्रव्य जिससमय आगामी कालमें होनेवाली * पर्यायके प्रति अभिमुखता धारण करेगा उससमय वह वर्तमान पर्यायसे भी व्याप्त रहेगा और बीती हुई ५ पहिला पर्यायसे भी व्याप्त रहेगा। यदि इसतरह न माना जायगा तो आगामी कालमें होनेवाली अभि.
मुखता भी द्रव्यमें न बन सकेगी क्योंकि आगामी कालमें होनेवाली पर्याय वर्तमान और भूतकालमें होने
*SAILORADARASASHASEASEAN
१२४