Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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द्रव्यके हैं वे ही भावके होने चाहिये परंतु यहां सो बात नहीं है। जीवाजीवासवबंधसंवरनिर्जरामोक्षा' इन द्रव्यवाचक शब्दोंका लिंग-पुल्लिंग और वचन बहुवचन है और 'तत्वं' इस भाववाचक शब्दका लिंग, भाषा नपुंसकलिंग वचन एक वचन है वह विरुद्ध है ? सो ठीक नहीं।
तल्लिंगसंख्यानुवृत्तौ चोक्तं ॥ ३१ ॥ लिंग और संख्या विषयमें सम्यग्दर्शनज्ञानेत्यादि सूत्रमें कहा जा चुका है वैसा ही यहां समझ लेना चाहिये अर्थात् जिसतरह 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' यहां तीनोंका मिलना रूप से मोक्षमार्ग एक है इसलिये 'मोक्षमार्गः' यहां एक वचन एवं 'जो शब्द नित्यलिंगी हैं वे अपना लिंग नहीं है छोडते' इस व्याकरणके नियमानुसार मार्ग शब्द नित्यपुलिंग होनेसे पुल्लिंग है। उसीतरह 'जीवाजीवासूवंबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वं' यहां मिलना रूप तत्व पदार्थ एक है इसलिये ,तत्वं' यहां एक वचन और नित्यनपुंसकलिंगी होनेसे नपुंसकलिंग है। तथा जिसतरह सम्यग्दर्शनज्ञानत्यादि सूत्रों सम्यग्द-9 र्शनादि तीनों आपसमें जुदे जुदे प्रधान हैं इसलिये 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि' यहां बहुवचन और चारित्र शब्द नित्यनपुंसकलिंग होनेसे नपुंसकलिंग है उसीतरह जीवाजीवेत्यादि सूत्रमें भी जीव अजीव आदि जुदे जुदे प्रधान हैं इसलिये 'जीवाजीवासवबंधसंवरनिर्जरामोक्षाः' यहां वहुवचन एवं मोक्ष शब्द नित्यपुल्लिंग होनेसे पुल्लिंग है इसरीतिसे जहां जो लिंग और संख्या है उसकी उसी रूपसे प्रमाणता सिद्ध होने पर जीवाजीवेत्यादि सूत्रमें लिंग संख्याक विषयमें शंका करना निरर्थक है।
इसप्रकार श्रीतत्त्वाराजवातिकालंकारकी माषाटीकाके प्रथमाध्यायमें चौथा आदिक समाप्त हुआ ॥१॥ ..
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