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इनसे ज्ञात होता है कि यदिक ऋषियों को यह विश्वास था कि यदि इन देवताओंकी स्तुति. पूजा, आदि नहीं करेंगे तो य हमारे पुत्र आदिकों को मार देंगे तथा हमारा भोजन आदि भी चुरा लेंगे । अतः ये देयता एक नहीं अपितु पृथक २ अनेक हैं। तथा न. य. ईश्वरकी भिन्न शक्तियाँ ही है क्योंकि इनकी दुर्बुद्धि आदि ईश्वर की शक्ति नहीं हो सकती।
देवताओं के बाहन
निरुपक श्रय ।। ६ में देवताओंके वाहनोंका कथन है :
"हरी इन्द्रस्य रोहितः अभिः हरितः दिस्वस्थ, रासभो अश्विनोः, अजाः पूष्णाः पृषत्योमरुताम् , अरुण्योगात्रः उषसः श्याचा सवितुः, विश्वरूपाः वृहस्पतेः नियुतोवायोः" ___ अर्थान-- दोहरे घोड़े इन्द्रक, लाल घाड़ा अनिका. हरा घोड़ा सूर्यका, दो गर्दभ अश्विनीकुमारोंके, बहुतबकरे पूषाके, • पृपती मरुतोंके, लाल गायें उषाके. काले रंगकी सविताके, सब रंगों वाली वृहस्पतिके,-चितकबरी गायें वायुके वाहन हैं।"
मूल संहिताओं में भी इन वाहनोंका कथन है, यथा
युजाथा रासभं रथे, ऋ० १ । ११६ । २ (अश्विनी देवता) इसी प्रकार ऋ० ७ १ २५ । ५ में इन्द्र के घोड़ोंका कथन है तथा ऋ० ७ । ६० ७ में सूर्यके सान घोड़ों का उल्लेख हैं।
(अप्रत सप्त हरितः ) इसी प्रकार ऋ० ५। १३८ । ४ में पूषाके अजवाहन बताये हैं। इससे भो देवताओंकी पृथक पृथक सत्ता सिद्ध है।
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