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लिखेंगे। यहाँ तो सृष्टिकर्ता ईश्वरका प्रकरण है अतः उन सूत्रों पर विचार करते हैं। जिनसे आपने ईश्वर की सिद्धी की है।
स हि सर्ववित् सर्व कर्ता | ३ | ५६ | ईशेश्वर सिद्धिस्सिद्धा । ३ । ५७ ।
समाधि सुषुप्ति मोक्षेषु ब्रह्म रूपता । ५।११६ । द्वयोः सवीजमन्यत्र तद्धतिः | ५|११७ |
इनका अर्थ करते हुये आप लिखते हैं कि- "अर्थात् वह ईश्वर सर्व और सर्वकर्ता है। इस सूत्र में ईश्वरको सर्व और सृष्टिकर्त्ता कहा है। यह ईश्वर नहीं तो क्या है।
आस्तिक लोग यही तो कहते हैं कि ऐसी कोई सत्ता है जो सब चीजों का ज्ञान रखती है. और संसारको बनाती है ।। ५६ ।। इस प्रकारके ईश्वरकी सिद्धि सिद्ध है। किस प्रकार के ईश्वर की जो सर्वज्ञ और सृष्टिकर्ता हो ॥ २७ ॥ आदि
३- इस सूत्र में बताया गया है कि जीवको समाधि सुषुप्ति और मोक्ष दशामें ब्रह्मरूपता प्राप्त होती है।
४- समाधि और सुषुप्ति में तो दुःखका बीज रहता है और मोक्षमें वह भी नष्ट हो जाता है "आगे आपने पांचवी अध्यायके वे ही १०.११.१२ सूत्र लिखकर यह लिखा है कि ये सूत्र ईश्वर के उपादान कारणका खण्डन करते हैं। निमित्त कारणका नहीं ।" परन्तु आपकी इन युक्तियोंका तथा सत्यार्थमें किये गये अर्थो का खण्डन स्वयं आर्यसमाज के सुयोग्य विद्वानने ही किया है अतः उसको यहां लिख देते हैं।
प्रपंच परिचय
गुरुकुल कांगड़ीके सुयोग्य स्नातक प्रो. विश्वेश्वर सिद्धान्त
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