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शुद्ध
अशुद्ध मित्युषासीत स्योंर्ध्वः सुशि वाजयत्
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आर असखंय मिमित अवेताश्वर इंगीचर सकता इन्द्रियों ग्रास्त्र अधिभौतिक सृष्टि से धर्म-सृष्टि से नैय्यायिकोंके परमाणुयो का गुणज्ञान का निरिन्द्रिन 'बिकल्पात्माक व्याकरणात्मक स्वय मृत्य प्रति
मिल्युपासी स्योर्ध्वः सुषि वासयेत् वर्णित है और असंख्य निमित्त श्वेताश्वसर दृष्टिगोचर सकता इन्द्रियों के ग्राह्य आधिभौतिक दृष्टि से धर्म दृष्टि से नैयायिकों के परमाणुओं का गुण का ज्ञान निरिन्द्रिय विकरूपात्मक व्याकरणात्मक स्वयंभू भूस्यु प्रकृति
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