Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 878
________________ पृष्ठ ५६१ नय ५६३ ५६४ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ४ न पुनर्व ५ बनता है অনাঃ १० लगिया १६-२० हैं आकाशाववायुः आकाशाद्वायुः शब्दकेण होनेका शब्द के गुण होने का स शब्द द्गख चित्र स शब्दः पुद्गलचित्र: वर्गणा हते हैं वर्गणा कहते हैं ऐतहासिक ऐतिहासिक २. अर्थ साधक अर्थात् साधक कर्म फल के कर्म फल दाता के मात्र स्थान स्थान मात्र मैश्ययं मैश्वर्य स्वकृताभ्यगम स्वकृताभ्यागम ईश्वर को ईश्वरका ब्रह्म तो ब्रह्म में तो ५६४ ५६५ - x.kSKHE ब्रह्मके ५६८ प्रक्षको पुष्टि प्रथक १६ तुष्टि धृथक लक्षण लक्षण प्रादात प्रदात १८ उसीसे उसी सूत्र से १-२ द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष प्रसूतात् अधिक पाठ है ३ निःश्रेयसधिगम निःश्रेयसाधिगमः ५७५ ५७८ -

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