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भावों के अनुकूल हो । इस मामिश्री से उसके वासना शरीर के ढाये में डलने से ऐसा भेजा ( मस्तिष्क ) बन जाता है कि जिस से परोपकारी गुण ही प्रगट हो सकते हैं न कि पशुओं की सी नीच वृतियाँ | याँ अगर कोई मनुष्य एक जन्म भर चयन्त परोपकार में लगा रहे तो आगे जन्म में उसका भेजा ( मस्तिष्क ) उदार और हितकारी शक्ल का बन जाता है और जब ऐसा इस भेजे के साथ पैदा होता है कि जिससे उत्तम से उत्तम प्रेम और करके मधुर इस अद्भुत प्रभाव पर जगत् भर अचम्भा करके यह मानने लगता है कि यह विधाता की स्वाभाविक देन है, न कि उस बच्चे की पहले जन्म की कमाई । परन्तु ये उत्तम प्रकृतियां जो सद्गुणों से भरपूर हैं, उन कष्टों का फल हैं जो कि बहुत काल तक वीरता के साथ सह गये हैं। ये कष्ट पिछले जन्मों में उठाये गये हैं जिसकी व याद नहीं है परन्तु अन्तरात्मा को इनका ज्ञान ( खबर ) है और एक दिन ऐसा होगा कि इनका ज्ञान स्थूल अर्थात जागृत अवस्था में भी होने लगेगा।
५३ -यों क्रमसे मनुष्यकी उन्नति होती जाती है । जम्म २ में हमारा सुभाव बनता जाता है और जो कुछ लाभ या हानि होती जाती है उसका लेख बासनिक शरीरोंमें बराबर होता रहता है. और इनके ही आधार पर आगे स्थूल शरीर बनता है । एक २ सद्गुण यों उन्नति की एक २ पंक्ति अर्थात् नीच प्रकृतिके बार २ जीत लेनेका बाहरी चिन्ह है। सो बुद्धि और भलाइयां कि जन्म से ही किसी बच्चे में पाई जाती हैं उनको उसका "सहज स्वभाष” कहते हैं और पहिले जन्मोंमें उसने विपदा ( आफसें ) झेली हैं. और उसकी हार और जीत हुई है उन सास सहज स्वभाव से पक्का पता और प्रमाण मिलता है। यह जान (सिद्धान्त )