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कि ईश्वर ने अपने लिये कुछ नियम चुन लिये हैं, तथा उनका पालन करने में भी वह स्वतन्त्र है. तो ऐसी स्वतन्त्रका प्रदर्शन यह क्यों नहीं करता !
यदि कहो कि यह उनकी इच्छा है तो इच्छा का कारण क्या है । अथवा कौनसी वह शक्ति है जो ईश्वर को नियत समय पर रचना के लिये चाप्ति करती है तथा प्रतिक्षण भी नियत समय पर उसको नियमानुसार कार्य कर ने के लिये विवश क्यों होना पड़ता है। यह विवशता ही आपके कथनानुसार उसे जड़ सिद्ध कर रही है। तथा श्रपने जब जड़को भी नियमों का पालन कर्ता मान कर यह सिद्ध कर दिया कि ईश्वर भी इसी प्रकार नियमों का पालन करता है। यदि आप कहें कि जड़ की तरह पालन नहीं करता है. तो कोई दृष्टान्त बतायें कि किस प्रकार पालन करता है। तथा क्यों पालन करता है ? आपके कथानुसार गेहूं से गेहूं और चसे से चणा उत्पन्न होता है यह सम्पूर्ण संसार में नियम है। जिस प्रकार चोरी की सजा कैद है. यहाँ पर प्रश्न है कि जिस प्रकार चोरी आदिकी सजा में परिवर्तन हो सकता है उसी प्रकार गेहूंसे गेहूँ बनने के नियम में भी परिवर्तन हो सकता है, या नहीं? यदि वह कर सकता है तो आज तक कहाँ कहाँ fear और आगे करेगा । इत्यादि बता देना चाहिये । यदि नहीं कर सकता तो परतन्त्र ठहरता है जो कि जड़ का लक्षण है ।
आगे आपने ऋत शब्द के अर्थ करने की कृपा की हैं। ग्रह ऋत एक है, इसके आधीन समस्त सृष्टि हैं। छोटे २ नियम एक एक शास्त्र या सायंस अलग अलग बनाते हैं उसी प्रकार बड़े बड़े शास्त्र भी उस "ऋत" के आधीन है। और यह ऋत अपार बुद्धि में निवास करती है जिसको आस्तिक लोग ईश्वर कहते हैं ।
समीक्षा:- हम अत्यन्त नम्रता पूर्वक यह प्रश्न करना