Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 842
________________ ( २२) द्वारा वे प्रांतोंकी श्लैश्मिक ( Mucous Membranes of the intestine ) से जुड़ जाता है और उसी : शिरसे उसका शरीर विकशित होता है. और इस प्रकार उत्पन्न हुआ. शरीर अनेक भागों (Segments ) में विभक्त हो जाता है। वे इस प्रकार संहगा पौर प्रादान दिने जाने हैं. प्रत्येत. भात्री पुरुषके अंग होते हैं। जिनसे स्वयमेव विमा किसी बाह्य सहायता के गर्भकी स्थापना हो जाती है। कुछ कालके बाद पुराने भाग (Segrments) पृथक् होकर स्वतन्त्र कीद बन जाया करते हैं। इत्यादि। इन उदाहरणोंसे यह बात अच्छी सरह समझी जा सकती है कि सर्वथा सम्भव है कि रज और वीर्यका सम्मेलन मालाके पेटसे बाहर हो और उससे प्राणी उत्पन्न हो सके। इसी मर्यादाके अनुसार अमैथुनो दृष्टिमें मनुष्यका शरीर बनाने वाले रज और बीयका मेल माताके पेटसे बाहर होकर वृक्षों के चौड़े पत्ते रूपो मिल्ली में गर्भकी तरह सुरक्षित रहते हुये बढ़ता रहता है। रज और वीर्य किस प्रकार झिल्ली में आकर मिल जाले. इसका अनुमान फूलों के पौधों की कार्य प्रणाली से किया जा सकता है । फूलों के पौधे नर भी होते हैं और मादा भी नर पौधों से पक्षी वीर्य कण लाकर मादा पौध के रज कणों पर छोड़ देते हैं जिससे फूल और फन की उत्पत्ति हो जाती है। इसी लिये पक्षियोंको फूलोका पुरोहित, Marriage priest of flowers ) कहा करते हैं। अस्तु जब प्राणी .इस बाझ गर्भ में इतना बड़ा हो जाता है कि अपनी रक्षा आप कर सके तक वह : पत्ती रूपी भिल्लो फट जाती है और उसमेंसे प्राणी निकल पाया करता है। इसी का नाम अमैश्वनी सृष्टि है।

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