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( २ ) सुदर्शन के पत्तों और फूलों को खा-स्त्राकर खरान कर देने वाला सिद्ध हुआ । इस कीड़े को. एक शीशे की अलमारी में कुछ पत्तोंके साथ रख दिया गया । दस बारह दिनके बाद जब अलमारी खोली गई कीड़े का वहाँ चिल्ल भी बाकी नहीं रहा। इस परीक्षण से अमैथुनी मृष्टि की कार्य प्रणाली पर अच्छा प्रकाश पड़ता है।
साँचेका उदाहरण जिस प्रकार खिलौने श्रादि बनाने वाला पहले सांचा बनाता है, और फिर उसी सांचे से अनेक खिलौने ढाल लिया करता है, ठीक इसी प्रकार अमैथुनी सृष्टि सांच बनाने की कार्य प्रणाली है, और उसके बाद की मैथुनी सृष्टि सांचे से खिलौने आदि डालने का कार्यक्रम है।
अमैथुनी सृष्टि सब प्रकार की होती है
अमैथुनी सृष्टिमें केवल मनुष्य ही नहीं उत्पन्न होते. किन्तु पशु पत्ती इत्यादि सभी उत्पन्न होते है। ये भिन्न-भिन्न योनियां क्यों उत्पन्न होती है ? इस प्रश्न का उत्तर वैशेषिककारने. उनके पिछली सृष्टि में किये हुये कमाँ की भिन्नता दिया है। * महा प्रलय होने पर बैशेषिककार के मतमें किसी दिशा अथवा स्थानमें कोई प्राणी किसी योनि में याकी नहीं रहता । इसलिये अमैथुनी सृष्टि का होना अनिवार्य है । फिर उसने एक जगह लिखा है कि प्राचीन
आर्य प्रथानुसार, अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न होने वाले व्यक्तियोंको पिताके नामसे नहीं पुकारते जैसे भरद्वाज का पुत्र भारद्वाज. बल्कि
.. ... . . ... . .. .......... -. ___ * धर्म विशेषच (वैशेषिक ४ । २।८)
| अनियतदिग्देश पूर्वकत्वात् ॥ (वैशेषिक ४२१७१) .