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उत्पन्न होने वाले व्यक्ति के मूल नाम ही लिये जाते हैं। जैसे अग्रि, वायु, आदित्य अंगिरा नथा ब्रह्म आदि । इस लिये कि इनके कोई माता पिता नहीं थे। उसने अपने मत की पुष्टि में अ थुना सृष्टि को श्रावश्यक बतलात हुए है उसके वेद से प्रगणत होने का भी उल्लख किया है। x बेद में एक जगह श्रमधुन स्मृष्टि में उत्पन्न मनुष्योंको मम्बोधित करते हुये कहा गया है।
हे समस्त प्राणियो ' तुम न शिगु हो न कुमार किन्तु महान (युवा ). हा ।" :
नैमित्तिक ज्ञान जब अप्रैथुनो सृष्टि होने के कारण. ज्ञान देने वाले माता पिता आदि नहीं होते तो उस समय वह साल किस प्रकार प्रासको इस प्रश्नका उत्तर न मिलने के कारण ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति इलहाम) की जाती है। इसी कल्पनाका संकेत योगदशन के इस प्रसिद्ध सूत्र में ' स एवं पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्" ( योगदर्शन २ । ३१) अर्थात् वह ईश्वर जो समयसे विभक्त नहीं हो सकता. पहले ऋषियोंका भी गुरु है।" ---- --... .... . . .-.- ..-..... .---.. -- + समाध्या भावाच ॥ तथा संज्ञाया श्रादित्वात् ।।
(वैशेषिक ४/२।६।१०) ॐ सत्ययोनिजः ।। ( वैशेषिक ४।२।११) x वेद लिङ्गाच ।। (वैशेषिक ४१२।१२) : मह वो अस्त्वम को देवासो न कुमार काः । विश्वेससो महान्त त ।
(ऋग्वेद ८।३०।१)