Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 843
________________ ( ८२३ ) एक कीटका उदाहरण किस प्रकार विना प्राणियों के यत्न के रज और वीर्यका स्वयमेव सम्मेलन तथा प्राणी के पुष्ट और कार्य करने योग्य हो जाने पर झिल्ली का अपने नमः आदि किसे हो जाया करता है ? इसके लिये एक उदाहरण दिया जाता है-- मैं जब गुरुकुल वृन्दावन में था तो गुरुकुल की बाटिका में बने एक बंगले में रहा करता था उस बंगले के चारों ओर सुदर्शन के पौधे लगे हुये थे। इस सुहावने पौधे में एक प्रकार का की बहल जाता था जिससे उसके पसे और फूल सब खराब हो जाया करते थे: निम्न बातें प्रकट हुई: C " जब इस पौधे में नये पत्ते निकले तो ध्यान पूर्वक देख भाल करने से पता लगा कि एक काले रंग की तमाखू की तरह की कोई चीज कहीं से आकर एक पते पर जम गई और दो चार दिन बाद किसी अज्ञात विधि से वह - पते के मोटे दल और झिल्ली के बीच में आ गई। देखने से साफ मालूम होता था कि यह वही काली वस्तु है जो मोटे बोर पतले दलों के बीच में आ गई है। एक सप्ताह के भीतर अम उस वस्तु के एक ओर का पतला- पत्ते का वज्ञ (झिल्ली ) मी इतना मोटा हो गया कि अब वह वस्तु एक गांठ की की तरह पते में मालूम होने लगी । उसका रूप और रंग कुछ दिखाई नहीं देता था। अब वह बीज क्रमशः परोके भीतर लम्बाई में बढ़ती हुई दिखाई देने लगी और दस दिन के भीतर उसकी लम्बाई लगभग दो इंच के हो गई। ऐसा हो जाने के बाद एक सप्ताह के भीतर वह पत्ता फट गया और उस में से एक हरे रंगका कीड़ा जो दो सुनहरी रेखाओं से सीन हिस्सों में मनुष्य के हाथों की छोटी उंगली की तरह विभक्त था निकल आया यही कीड़ा

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