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(८. ) (E) "अयोनिज" जो बिना माता पिता के संयोग के उत्पन्न होते हैं और जिसे अमैथुनी सृष्टि कहते हैं। समस्त प्राणी जो जगत में उत्पन्न होते हैं. उनकी उत्पत्ति चार प्रकारसे होती है
(११ जरायुज-जिनके शरीर जरायु (मिल्लि) से लिपटे रहते हैं और बम जाय को फाड़कर. उत्पन्न हश्रा करते हैं, जैसे मनुध्य, पशु आदि।
१२) अंडज-जो अण्डोंसे उत्पन्न होते हैं. जैसे पक्षी, साँप मछली आदि ...
(३) स्वेदज-जो पसीने और सील आदिसे उत्पन्न होते हैं।
(४) उद्भिज-जो पृथ्वी फाड़ कर उत्पन्न होते हैं । जैसे वृक्षादि । इनमेंसे अन्तिम दो की तो सदैव अमैथुनी सृष्टि हुआ करती है और प्रथम दो की मैथुनि और अमैथुनी दोनों प्रकारकी सृष्टि हुश्रा करती है।
अमुथुनि सृष्टि का क्रम .. भूतोंकी उत्पत्ति के बाद, पृथ्वी से औषधी, औषधीसे अन्न अन्न से वीर्य ( अन्न से रज और वीर्य दोनों है ) और वीर्य से पुरुष उत्पन्न होता है। चाहे मैथुनी सृष्टि हो या अमैथुनी दोनों में प्राणी रज और वीर्यके मेल से ही उत्पन्न हुआ करता है।
मथुनी सृष्टि में. रज और वीर्य के मिलने और गर्भको स्थापना का स्थान. माताका पद हुआ करता है परन्तु अमैथुनि मष्टिमें - --....-...--. --- -. - - ..... .-- -- --- ---
ॐ तस्माद्वा एतस्मादात्मन अकाशः सम्भूतः । श्राकाशादायुः वायोरशिः अग्नेरापः । श्चद्रयः 'पृथ्वी । पृष्ट्या औषधयः | औषधीभ्योऽत्रम् | अन्नाद्रतः रेतसः पुरुषः। (तैत्तिरीयोपनिषद् ब्रह्मानन्द बल्ली, प्रशन अनुवादक)