________________
( ८११ ) अर्थात--सृष्टि के दो रूप है । एक साकार और एक निराकार पानी जब भाप बन कर उड़ जाता है। तो निराकार हो जाता है क्योंकि इष्टिमें नहीं आता। परन्तु जव भाप जम कर बादल बन जाती है तो साकार हो जाती है। वायु निराकार है । क्योंकि उसे देख नहीं सकने । आकाश निराकार है । अब प्रश्न यह होता है ईश्वर निराकार है या साकार । साकार बस्तु श्रत्रश्य स्थूल होगी। सृष्टिमें जितनी स्थूल वस्तुयें, सूक्ष्म वस्तुओं में व्यापक नहीं हैं। इसलिये या तो ईश्वर को सर्व व्यापक नमाना जाय या उसे साकार न माना जाय । साकार और सर्वव्यापक दोनों होना असम्भव है। यदि सर्व व्यापक नहीं मानते तो कत्ती भी नहीं भान सकते। यदि कसा नहीं मामले को ईश्वर ईश्वर ही नहीं रहता और आस्तिकताकी भित्ति धम्मसे गिरकर चकनाचूर हो जाती है । इस लिये आस्तिकों का ईश्वर को साकार मानना स्वयं अपने मत का खण्डन करना और नास्तिकों के सामने अपनी हंसी कराना है। ___ समीक्षा:-यहां आपने सम्राट और ईश्वरका दृष्टान्त देकर लिखा है कि- राजा क्योंकि प्रजादिके हृदय में व्यापक नहीं है इसलिये लोग उसकी इच्छाके विरुद्ध भी कार्य कर बैठते हैं. परन्तु ईश्वर सबके हृदयमें व्यापक है अतः जीव उसकी इच्छाके विरुद्ध कार्य नहीं कर सकते। यही कारण है अनेक विद्वानोंका यह कहना है कि यह जगत किसी पतित प्रात्माका कार्य है। क्यों कि वही सबसे पपादि कराता है। तथा पाप स्वयं कराता है और . फल इन निर्दोष वेचारे, जीवोंको दे देना है। जिस बातको आपने अनि संक्षेपमें कहा है पुराणकारोंने इसीको स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कास्यस्पेष एवैतान् जन्तून नाना शरीरगान् । भृत्यानिष्टानिव सदा कर्माणी साध्व साधुनी।