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( ६) फल है तो ईश्वर इस फल देने में क्या करता है। यदि कहो फल देता है. तो प्रश्न यह है कि ईश्वर इस मामले में क्यों पड़ता है, उसका अपना कुछ स्वार्थ है या बिना ही प्रयोजन के कार्य करता रहता है । यदि कहो कि जीवों की भलाई के लिये ऐसा करता है तो वह भलाई श्राज तक क्यों न हो सकी ? इत्यादि अनेक प्रश्न हैं। आगे आपने विच्छूके डंक शेप का पंजा नामिछम
आदि का प्रयोजन बताया है कि उससे शिकार को कष्ट कम होता है। इस प्रयोजन का ज्ञान उस समय होता जब ईश्वर को भी शिकार बना दिया जाता और शिकारी उसको मारता और जब यह शिकायत करता तो उससे कहा जाता कि घबराओ मत यह दुःख केरी उन्नति के लिये है। ___ इसीसे शुझे सुख प्रास होगा । तरे विकाश का मार्ग ही यह है
और हम तेरे को दुःख भी अल्पमा ही देते हैं। अभिप्राय यह है कि संसार में भयानक पाप है और घार नारकीय दुःख है यह सिद्ध है। अब यदि ईश्वर को जगत कर्सा माना जाय तो वहीं इन पापों का और इन दुःखों का उत्तरदायी होता है।
आगे श्राप लिखते हैं. कि- 'सम्राटका अपने नौकरों के मस्तिष्कों पर कुछ भी वश नहीं है। इसी प्रकार ईश्वरका भी उन सन्ताओं पर वश न होता और वह उसकी सृष्टिको इलट पुलट कर डालते जैसा बहुधा सम्राटके चाकर कर देते हैं। और जिसके लिये सन्नादको दण्ड देना पड़ता है । सम्राटके साम्राज्यमें सैकड़ों बातें ऐसी हो सकती हैं, जो सम्राटकी इच्छाके विरुद्ध होती है क्यों कि सम्राट प्रजाके घटके भीतर व्यापक नहीं होता।
सृष्टिके अवलोकनसे इतनी बातों का पता चलता है(१) सृष्टि नियमानुकूल है।। (२) नियमोंसे अपार शुद्धिका परिचय होता है।