Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 836
________________ ( ८६ ) मानों के यहां भी ऐसी ही कथा है। वर्णनशैली का भेद है नह और उसका सारा कुटुम्ब बच गया तथा नौका जूदी पहाड़ की चोटी पर जाकर ठहरी। इसी प्रकार संसार के सभी धर्मों में तथा जातियों में इस प्रलय का वर्णन है । (१) चीन पाते इसको फोई की प्रलय कहते हैं । (२) यूनान वालों के यहां हुकेशियान । (३) असीरिया विसु के नामसे कहते हैं। इसी प्रकार अन्य लोगों के यहां भी इस प्रसिद्ध है । असीरिया की पुरानी खुदाई में इसका प्रमाण प्राप्त हुआ । अतः ऐतिहासिक विद्वान इसको १०००० हजार वर्ष से पूर्व की घटना बतलाते हैं, जो कुछ भी हो यह घटना सत्य है इस में सन्देह करने का कोई कारण नहीं है। यह प्रलय जैन मान्यताके अनुकूल है। सुना जाता है इस सूहकी का अयोध्या में है । मस्त्य पुराणके अनुसार यह वैवस्वत मनु है परन्तु वहां लिखा है कि जब प्रलय समाप्त होगई तो स्वयं मनु उस्पन्न हुए और उन्हींसे पुनः वंश चला वैवश्वत मनु सातवां मनु माना जाता है तथा स्वयंभू मनु पहला मनु माना जाता है तो फिर यह स्वयंभू मनु कांसे आ गये ? वास्तव में तो इस मस्त्य पुराणने मन्वन्तरोंकी कल्पनाको ही नष्ट कर दिया । अस्तु, हमने इतने मनुष्योंके प्रमाण उपस्थित किए हैं। (१) वैवस्वत (२) सावर्णि (३) स्वयंभू (४). स्त्रीमनु इन सबके विषय में ही ऐसी कहावत है कि इनके नामसे वंश चले तथा इनके नामसे भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ । सब १४ मनु हैं. उनमें ७ सावण हैं। यदि ऋग्वेद में हम उनका वर्णन मानें तो सात शेष रह जाते हैं । उनमें सबसे पहला स्वयंभू और सातवां वैवस्वत अतः शेष ५ की भी ऐसा ही समझा जा सकता है । श्रतः १४ मनु और एक काश्यपकी स्त्री मनु इन १५ व्यक्तियोंका एक समान वर्णन मिलता है। अतः यह प्रश्न स्वभावतः उठता है कि इनमें से |

Loading...

Page Navigation
1 ... 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884