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यह
बिल्कुल गलत है। वास्तव में निराकार कोई द्रव्य नहीं होता है, एक मिथ्या कल्पना है ।
प्रथम तो आपने आकारका सम्बन्ध इन्द्रियोंसे बताकर लिखा कि साकार वस्तुको अांखसे देख सक्से और हाथसे लू सकते हैं।
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फिर आपने वायु और बिजली श्रादिको जो प्रत्यक्ष ही इन्द्रियोंका विषय है उनको भी निराकार कह दिया। ये परस्पर विरोध है। अतः स्पष्ट है कि आपका यह साकार और निराकार का वर्णन भी भ्रम मात्र है। रह गया ईश्वरके साकार और निरा कारका प्रश्न सो प्रथम तो ईश्वरका अस्तित्व ही सिद्ध नहीं है तो साकार और निराकारका प्रश्न ही उपस्थित नहीं होना ।
प्रलय
जगत की उत्पत्ति से प्रथम प्रलय का सिद्ध होना श्रावश्यक है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि वैदिक साहित्य में जहाँ सृष्टि उत्पति का विरोध किया है, वहां इस वर्तमान विश्व की प्रलय हो जायगी इसका भी विधान नहीं है। वास्तवमें प्रलयका अर्थ है किसी प्रान्त विशेष की भूमिका कुछ दिन के लिये वसने योग्य न रहना अथवा जैसा हम हिमालय की कथा में लिखचुके हैं. किसी समुद्र के स्थान पर पर्वत का हो जाना अथवा पृथिवी को जगह पर समुद्र का हो जाना। बस इसी खण्ड प्रलय का नाम शास्त्रों में प्रलय हैं। ऐसी प्रलयको जैन शास्त्र भी मानते हैं। ऐसी प्रलय का का इतिहास भी मिलता है। यह जलप्रलय " की किस्तीके नाम प्रसिद्ध है। वैदिक साहित्य में यह कथा "मनु" के नाम से प्रसिद्ध है ।