Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 822
________________ ( ८०२ ) अस्तित्व तथा जीवके अमर होनेका ग्रही उत्तम प्रमाण है कि मनुष्यमें आचार सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करनेकी योग्यता है। बाय जॉन न्यू मैन अन्तःकरण को धर्मका मूलाधार बताते हैं। उनका आग्रह है कि प्राकृतिक धर्मके सिद्धान्तों को इसी मुख्य नियम के आधार पर निश्चित करना चाहिय । जर्मनीके जीवित आस्तिकवादी डाक्टर शैकिलने अपने समस्त आस्तिकवादको आधार शिला' अन्त मरगा पर ही रमनी है। उनका श्रारम्भिक सिद्धान्त यह है कि अन्तःकरण यात्माकी धर्म सम्बन्धी इन्द्रिय है। और उनीसे हम ईश्वरका प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं" (फ्लिएटका आस्तिकवाद पू० २१०) समीक्षाः- यहां परस्पर विरुद्ध बातोंका इतना आधिक्य है कि कुछ कहा नहीं जाता। प्रथम तो सत्यार्थ प्रकाशके प्रमाणसे यह सिद्ध किया कि चोरी आदि पाप हैं और परोपकारादि पुण्य अथवा जिस कार्य में करने से ईश्वर की ओर से अन्तःकरण में भय. शंका. और लज्जा उत्पन्न हो वह पाप है। इसकी पुष्टि भी अनेक प्रमाणों से कर दी है। तन् पश्चात् आपको पाप और पुण्य के इस लक्षणमें अनेक त्रुदियां बीखने लगी । अतः श्रापने कहा कि स्वतः न तो कोई काम पाप ही है, और न पुण्य ही। आपने अपने इस सिद्धान्तको सिद्ध करनेके लिये भी एडीसे चोटी तकका पसीना बहा दिया। संभव है जब आप यह लिख रहे थे. उधर ईश्वरका ध्यान चला गया अतः उसने उसी समय आपके अन्तःकरणमें भय. शंका, लजा, आदि उत्पन्न कर दी हैं। अतः श्रापने पुण्यका लक्षण बनाया कि “लो अन्तिम उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो । तथा जो इसके विपरीत है वह पाप है। यहां यह प्रश्न शेष रह गया कि अन्तिम उद्देश्य क्या है यह

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