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दूसरे जीवों के स्वाने पीने में विघ्न करनेसे दूसरोंकी काम आने योग्य ahatet fairड़ने से साधारण जनता के विरुद्ध कोई लाभ उठाने से दान करने वाले को दान में कोई रुकावट खड़ी कर देनेसे इत्यादि बुरे कार्य से अंतराय कम बँधता है और इससे उलटे अच्छे कार्य करने से अंतराय कर्म का बोझ हल्का होता है।
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इन आठ कर्मो साता बेदनीय, मनुष्य आयु. देव आयु शुभ नाम कर्म, उच गोत्र कर्म' यह कर्म पुण्यकर्म (अच्छे कार्य ) माने गये हैं क्योंकि इनके कारण जीवोंको कुछ सांसारिक सुख शिक्षा है। इनके पिता शेष सभी पापकर्म ( दुखदायक ) बुरे
कर्म हैं ।
जिस समय जीव अछे कार्य करता है. सत्य दया. हमा सरल व्यवहार करता है. परोपकार. विनय सदाचारसे कार्य करता है, तब उसके पुण्य कर्ममें अनुभाग ( रस ) बढ़ता है I जिससे वह आगामी समय में सुख पाता है । और जिस समय जीवहिंसा झूठ बोखेबाजी, व्यभिचारी, क्रोध. अभिमान, लोभ. अन्याय, अत्याच र करता है तब उसके पापकर्मोंमें रस बढ़ता हैं। ( वे ज्यादा मजबूत हो जाते हैं) जिसका नतीजा आगे चलकर बुरा भोगना पड़ता है।
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स्थिति और अनुभाग
पिछेल यह बताया जाचुका हैं कि मानसिक विचार, बचनकी धारा और शरीरकी किया जिस उद्देश( इरादे या मंशा के अनुसार होती है आकर्षित यांचे हुये ) कार्माण में उसी सरहका सुधार. बिगाड़, भला बुरा करने का असर पड़ता है। यहां पर एक यह बात ध्यान में और रखनी चाहिये कि जीव जो भी काम करता है वह या तो गहरी दिलचस्पी) करता है या मंद रूपसे यानी