________________
( ७३६ )
घनी भूत बन गये वृक्षावस्था में जलने की शक्ति उनको सूर्य से प्राप्त हुई थी। सूर्य की रोशनी और गर्म में वृक्ष कारवोन द्वियोषिद से कारवीन हा ग्रहण करते हैं। कारबोन द्विषिद (Carbon dioxide) और कारवोनको अलग करने में शक्तिकी आवश्यकता
| बहु शक्ति सूर्य के ताप से आती है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है। वृक्ष म के ताप से जितनी शक्ति खींचते हैं उतनी ही शक्ति (न रत्ती कम न रती अधिक) जलने में लगाते हैं। घासलेट तेल और पेटरोल में भी यह नियम लागू पड़ता है। इस पर से ज्ञात हो जायगा कि कोयलों में जो शक्ति अभी हम देखते हैं वह शक्ति खान से निकलने के बाद प्राप्त नहीं हुई है, किन्तु लाखों करोड़ों वर्ष पहले जब वे वृक्ष के रूप में थे तब से उनमें संचित हैं। उन पर हजारों फीट मिट्टी के स्तर जम जाने पर और पत्थर रूप बन जाने पर भी सूर्य की रश्मियों से प्राप्त की हुई शक्ति ज्यों की त्यों कायम रख सके | और हजारों लाखों या करोड़ों वर्ष बाद उस शक्ति को दूसरे कोयले के अवतार में प्रकट कर सके ।
( सौ० प० अ० ५ सरांश )
सूर्य से कितनी शक्ति आती है
गर्मी नापने के यन्त्र से ज्ञात हुआ है कि वायु मण्डल को ऊपरी सतह पर जब खड़ी सीधी रश्मि गिरती है तब प्रति वर्गगज पीछे डेढ़ बलके बराबर शक्ति आती है । परन्तु वायु मण्डल के बीच थोड़ी गर्मी रुक जानेके कारण उत्तर भारत वर्ष के ताप में करीब दो वर्गगज पर सामान्यतया एक अश्वयल की शक्ति थाती है । इस हिसाब से सारी पृथिवी पर लगभग २३००००० ०००००० तेईस नील अश्वचल जितनी शक्ति उतरती हैं | यह तो अपनी पृथ्वी की बात हुई। सूर्य का साप तो अपनी पृथ्वी के बाहर भी चारों तरफ अन्य ग्रहों पर भी गिरता है। उन