________________
=
( ७६० )
तभी आपके ईश्वर की सिद्धि नहीं होगी। वहाँ यह प्रश्न होगा कि ईश्वर का भी कोई प्रयोजन है या वह निष्प्रयोजन है । यदि प्रयोजन है तो उसके भी कर्ता की आवश्यता होगी और यवि निष्प्रयोजन ( बेकार ) है तो ऐसे ईश्वर का मानने से क्या लाभ है। आदि अनेक दोष है ।
विशालता
आगे आपने जगत को विशालता का वर्णन करके यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि इस विशाल जगतको कोई अल्प शक्तिशाली व अल्प ज्ञानी नहीं बना सकता |
सबसे प्रथम तो इस संसार का बनना असिद्ध पुन: बुद्धिमत्त कर्ता असिद्ध, यतः जब इसका बनना ही प्रसिद्ध है तो कर्ताका प्रश्न ही नहीं उठता। और यदि विशाल पदार्थका कर्ता कोई सर्वच व सर्व शक्ति मान होता है. तो ईश्वर भी विशाल है उसका भी कोई कर्ता होना चाहिये । पुनः उस दूसरे ईश्वरका भी इस प्रकार अवस्था दोष आवेगा ।
कर्ता हैं ।
आगे आपने लिखा है कि
"अब हम मुख्य विषय पर आते हैं, कि क्या ईश्वर सृष्टिकर्ता है ? नैयायिकोंने ईश्वर में आठ गुण माने है ।
संख्यादयः पंच बुद्धिरिच्छायनोऽपि चेश्वरे ।
भाषापरिच्छेद || ३४ ||
अर्थात् ईश्वर में निम्न लिखित आठ गुण हैं। (१) संख्या (२) परिमाण (३) पृथकत्व ( ४ ) संयोग (५) विभाग (६) बुद्धि, (७) इच्छा (८) प्रयत्न |