Book Title: Ishwar Mimansa
Author(s): Nijanand Maharaj
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 795
________________ ( ७७k ) पड़ जाती है उसी प्रकार पृथ्वीका गोला जब ठंडा होने लगा तो उसमें सिकुड़न पड़ गई ऊँचे स्थान पहाड़ बन गए और नीचे स्थान समुद्र बन गए। इस प्रकार (Physics) और रसायन शास्त्र ( Chemisty ) के पंडितोंने जल वायु आदिका भी विश्लेषण (Analysis ) किया और उनके उन तत्वों को अलग करके दिखा दिया जिनके संयोग से यह बने थे। यह दूसरी बात है कि इन पदार्थोंका आरम्भ काल हमारी आँखों के सामने नहीं है। परन्तु कुछ को तो हम अपनी आँखसे नित्य प्रति बनते देखते हैं और दूसरोंका विश्लेषण करके यह जान सकते हैं कि यह कभी बने थे । वस्तुतः किसीसे पूछा जाय कि बेचनी हुई चीज कौनसी है? तो वह न बता सकेगा। वह इन्द्रियां जिनसे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं और वह पदार्थ जिनका ज्ञान प्राप्त किया जाता है यह दोनों ही बने हुए पदार्थ प्रतीत होते हैं। वैज्ञानिकोंका विशेष प्रयत्न ही इसी लिये होता है कि उन मूल तत्वोंका पता लगाया जाय जो स्वयं नहीं बने और जिनसे अन्य पदार्थ बने हैं। परन्तु दीर्घकाल के प्रयत्न से भी वह अपने इस काम में सफल नहीं हुए। जिनको पहले मौलिक तत्व समझा जाता था वह अव संयुक्त पदार्थ सिद्ध हो चुके हैं। और जिनको आज कल मूल तत्व समझा जाता है उनके लिये भी निश्चय करके यह कहना कठिन है कि उनके माता पिता कोई दूसरे तत्व तो नहीं है। फिर यदि निश्चित हो जाय कि अमुक पदार्थ मूल तत्व है तो भी जिस अवस्था में वह हमारे सम्मुख है। वह तो फिर भी बनी हुई ही है क्योंकि वह अपने ही परमाणुओं से बना है। उदाहरण के लिये माना कि सोना तत्व है । परन्तु सोनेकी डली तोड़ी जा सकती है. सोनेके जिन अणुओं से वह डेला बना है वह अवश्य किसी न किसी समय किसी न किसी साधन द्वारा संयुक्त हुए होगे

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