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है तो भी प्रश्न यही है कि उस विश्वास का आधार क्या है । यदि कहो कि प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा, तो ऐसे असंभव प्रयोजनके लिये ईश्वर क्यों अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है। तथा च प्राज तक ईश्वर ने जीवों को यह बताने की कृपा क्यों न की कि अमुक वस्तु मैने अमुक प्रयोजनके लिये बनाई। यदि वह इतना कष्ट और करता तो न तो मनुष्यों में इतना मत भेद ही रहता और न इस प्रकार का कलह ही । दूसरी चीज यह है कि-इस प्रयोजन बाद के अनुसार यह माना जाता है कि यदि एक जाति शासक है और दूसरी गुलाम तो इस में भी ईश्वर का विशेष प्रयोजन है। ___ इसी प्रकार, यूरुपके भयानक युद्धोंका तथा बंगाल के कहत व बाढ़ थानेका और न जोना , पसाब में मुसलमानों ने हिन्दुओं पर राक्षसी भयानक अत्याचार किये हैं ये सब व्यर्थ नहीं हुये हैं, अपितु इन सबमें ईश्वरका विशेष प्रयोजन है। दूसर शब्दों में ये सब कुकृत्य किसी प्रयोजन वश ईश्वरने ही कराये है। अतः यह प्रयोजनवाद मनुष्यों को अकर्मण्य और गुलाम बनाने वाला है प्रयोजनवाद वास्तव में एक मानसिक विमारी का नाम है और कुछ भी नहीं है।
यह प्रयोजनवाद पुरुषार्थ, स्वतन्त्रता, और उन्नतिका सबसे बड़ा और प्रवल शत्रु है। जब तक यूरूपमें यह प्रयोजन्याव प्रचलित था उस समय तक उसने विज्ञान आदिमं उन्नति नहीं की। परन्तु अब पुनः कुछ दार्शनिकों ने इसको अपनाना भारम्भ किया है। ये लोग इसका सहारा लेकर पुगने धर्मका ही प्रचार करना चाहते हैं । यूरूपमें इसका विरोध भी बड़े जोरोमें हुआ है। ___अापने स्वयं इस प्रयोजनवादको हिमायत करते हुये लिखा है कि यह कहना कि ये सब साधन ( सांप आदिके विषेले दांत शेर आदि के पंजे, व भिरह श्रादिके डंक) दुःख देने के लिये है