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ब्रह्मद्वारा रचे हुये इस जगतकी प्रलय करके अपने में लीन कर लेता है । यही कारण है कि इस सृष्टि की आयु सौ वर्षकी है । वर्तमान ईश्वरकी कल्पना का शायद यह पूर्व रूप है तथा वैशेषिक दर्शनकी जो अनेक न्यूनता है, उनकी पूर्ति करनेका असफल प्रयास है।
तर्क और ईश्वर
क्यों ? महाभारत में मीमांसा में भी सन्य साहब ने यह प्रश्न उठाया है कि यह सृष्टि क्यों उत्पन्न हुई है ? अाप लिखते हैं कि यह देखते हुये कि तत्वज्ञान का विचार भारतवर्ष में कैसे बढ़ता गया हम यहां पर आ पहुंचे । अद्वैत वेदानी मानते हैं कि निष्क्रिय अनादि परसम से जड़ चेतनात्मक मच मटि उत्पन्न हुई फिन्तु कपिल के सांख्यानुसार पुरुष के सान्निध्य से प्रकृतिसे जड़ चेतना स्मक सृष्टि उत्पन्न हुई अब इसके आगे ऐसा प्रश्न उपरि ‘त होता है कि जो ब्रह्म अक्रिय है। उसमें विकार उत्पन्न ही कैसे होते हैं । अथवा जब कि प्रकृति और घुमघ का सानिध्य सदैव ही है. तब भी सृष्टि कैसे उत्पन्न होनी चाहिये । तत्वज्ञान के इतिहास में यह प्रश्न अत्यन्त कठिन है। एक ग्रन्थकार के कथनानुसार इस प्रश्न ने सब तत्वज्ञानियों को सम्पूर्ण दार्शनिकों को कठिनाई में डाल रखा है। जो लोग ज्ञान सम्पन्न चेतन परमेश्वर को मानते हैं. अथवा जो लोग केवल जह स्वभाव प्रकृति को मानते हैं, उन दोनों के लिये भी यह प्रश्न समान ही कठिन है । मियोप्लेटोनिस्ट ( नयेप्लेदोमतवादी ) यह उत्तर देते हैं कि-यद्यपि परमेश्वर निष्क्रिय
और निर्षिकार हैं तथापि उसके पास पास एक क्रिया मण्डल इस भांनि घूमता है. जैसे प्रभा मण्डल सूर्य बिंध के पास पास हमा करता है । सूर्य यद्याप स्थिर है तो भी उसके पास पास प्रभा