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शब्दका अर्थ है उत्साह देने वाला, उत्तेजना देने वाला । सत्व और तुमको यही रजोगुण कार्य में प्रवृत्त करता है, और स्वयं भी चल या गतिशील है । तमोगुणका धर्म गौरव, वोकीलापन है, और उसके साथ ही वह आवरक है। आवरक शब्द के भीतर गतिको रोकने का भाव भी अन्तर्निहित है। इस प्रकार यह तीनों गुण एक समष्टिमें भिन्न भिन्न प्रयोजन सम्पादन के लिये समाविष्ट
| परन्तु एक प्रश्न यह रह जाता है कि इन तीनोंके ऊपर जिन कर्मोंका उत्तरदायित्व है, वह परस्पर अत्यन्त विपरीत हैं । इतने अधिक विरोधी गुण परस्पर कैसे मिल सकते हैं और उनका एक समष्टिमें मिलकर कार्य कर सकना कहां तक सम्भव है ? हमारे सांख्याचार्यने इस प्रश्नको अछूना ही नहीं छोड़ दिया है, अपितु उसके उपपादनका यत्न सफलता के साथ किया है। इस प्रश्नके उत्तर में उपर्युक्त कारिकाका चौथा चरण लिखा गया हैं I
प्रदीपवचार्थतो वृत्तिः ।
जिस प्रकार दीपक के भीतर रुई भाग और तेल तीनों विरोधी और भिन्न प्रकृतिक वस्तुयें मिल कर कार्य करती दृष्टिगोचर होती हैं
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साँख्य का गुणवाद
उपरोक्त विज्ञान के साथ साथ सांख्यदर्शनके गुणवादका भी अवलोकन कर लेना चाहिये। अतः हम इसको भी उन्होंके शब्दों में पाठकोंके सन्मुख उपस्थित करते हैं। (१)
इसी प्रकार तीनों भिन्न भिन्न वृत्ति वाले गुण परस्पर विरुद्ध होते हुये भी एक समष्टिमें सम्मिलित हो सकते हैं। इन तीनोंकी यह समष्टि या प्रकृति ही संसारका संचालन कर रही है। और जहां जैसी आवश्यकता होती है उसीके अनुसार कार्य करती है।