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क्रिया के द्वारा, शरीर एवं इन्द्रिय आदि के कारण रूप अणुश्री में परस्पर विभाग प्रारम्भ हो जाता है, जिसके परिणाम में इस सयुक्त विश्व के पूर्व स'योग का नाश हो जाता है। इस प्रकार ऋमिक विभाग होतेहोते अंतमें प्रवि भक्ताः परमाणको अतिष्ठन्ते, एक दम अलग अलग परमाणु ही परमाणु रह जाते हैं ।
इस प्रकार भारत वर्ष के दार्शनिक साहित्यमें परमाणुवावकी उत्पत्ति हुई । यद्यपि सुदूर पूर्व और पश्चिम में स्वतन्त्र रूप में परमाणुवाद की सृष्टि हुई है, परन्तु उनमें कितना साम्य है ? साधारण तौर से पूर्व और पश्चिम के इस परमाणुवाद में कोई श्रन्तर प्रतीत नहीं होता। ऐसा मालूम होता है कि मानो एक ही दिमागसे दो विभिन्न स्थानों पर उसकी अभिव्यक्ति हुई हो । परन्तु इतनी अधिक समानता के रहते हुये भी उन दोनों में एक बहुत बड़ी विषमता है। पश्चिम का परमाणुवाद अपने में ही समाप्त हो जाता है, उसे प्रकृति निर्माण में किसी और सहायता की अपेक्षा नहीं रहती है, फिर भी उसमें एक बहुत बड़ी कमी है। परमाणुओं में आदिम क्रिया का विकास कैसे हुआ. इसका उपादान उसने नहीं किया । परमाणु जड़ पनायोंके अवयव है, उनमें सर्वथा निरपेक्ष स्वतः क्रिया की उत्पत्ति हो नहीं सकती फिर आदि क्रिया का विकास कैसे हुआ. इसका समुचित उत्तर देनेका सफल प्रयास परमाणुवादने नहीं किया। इसी कारण हम देखते हैं कि पाश्चात्य परमाणुवाद शीघ्र ही शिथिल पड़ गया है और उसके स्थान पर शक्तिवाद का अभिषेक किया गया है।
शक्तिवाद--इस शक्तिवाद सिद्धांतक अनुसार प्रकृतिका सार शक्ति Energy or Force है । परमाणुवादके अनुसार परमाणु वह परम सीमा थी, जिसके प्रागे किसी प्रकार का विभाग असम्भव था । परन्तु शक्तिवाद इससे एक कदम आगे बढ़ गया है।