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नाश नहीं हुआ बल्कि वायु मण्डल के षजनक अंश के साथ मिल कर कारबोनिक एसिट गैस के रूप में परिवर्तित होता है । इसी प्रकार शकर या नमक को यदि पानी में घोट दिया जाय, तो वह उनका भी नाश नहीं बल्कि संयम द्रव्य रूप में परिणत मात्र समझनी चाहिये । इसी प्रकार जहाँ कहीं किसी नवीन वस्तु को
उत्पन्न होते देखते हैं, तो वह भी वस्तुतः किसी पूर्ववर्ती वस्तुका रूपान्तर मात्र हुँ' | उस स्थान पर भी किसी नवीन द्रव्यको उत्पत्ति नहीं होती। वर्षा को धारा आकाश में मेघरूप में विश्वरन करनेवाली बाष्प का रूपान्तर मात्र है । घर में अव्यस्थित रूपसे पड़ीर हने बाली कड़ाही आदि लोहे की वस्तुओं में प्रायः जंग लग जाता है यह क्या है? यहां भी जंग नामका किसी नूतन द्रव्यकी उत्पत्ति नहीं हुई है, अपितु धातु की ऊपरी सतह जल और वायुमण्डल के भोजन के संयोग से लोहे के कसी हैडेट Oxy-hydrate के रूप में परिणत हो गई है । इसी को हम जंग कहते हैं । आज द्रव्याचरल वाद का यह सिद्धान्त रासायनिक विज्ञान का अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त समझा जाता है और तुला यन्त्र द्वारा किसी भी समय उसकी सत्यता की परीक्षा की जा सकती है ।
लगभग इसी प्रकार और शैली पर शक्ति साम्य के सिद्धान्त की व्याख्या भी की जा सकती है। संसार के संचालन के कार्य करनेवाली शक्ति, इनर्जी, या फोसेका परिणाम सदा सम रहता है। उसमें किसी प्रकार का न्यूनाधिक्य नहीं होता। हां परिणामवाद सिद्धान्त उसमें भी काम करता है, अर्थात् एक प्रकार की शक्ति दूसरे प्रकार की शक्ति के रूप में परित अवश्य हो जाती है। उदाहरण के लिये रेल का इंजिन जिस समय प्रशान्त रूपमें चल ने की तैयारी में स्टेशन पर खड़ा है, उस समय भी उसके भीतर शक्ति काम कर रही है, परन्तु इस समय वह शक्ति अन्तर्निहित