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{ ७३६ ) वर्ष पहले जैसा चमकता था वैसा श्राजभी चमकता है और पूर्व जिसनो ही शक्ति का व्य भी चालू है । तो उस शक्ति का पूरक कौन है ? ईश्वर तो नहीं है ? सर्य की अपेक्षा कोई अधिक शक्तिशाली होना चाहिये जिसके जरिये सूर्य को शक्ति प्राप्त हो सके। ईश्वर के मिना अन्य कौन हो सकता है ? ई. सन् १८६४ में जमन बैज्ञानिक हेल्महोल्टसने बताया है कि सूर्य अपने आकर्षण से ही दख रहा है । दवायस गर्मी उत्पन्न होती है। उदाहरण रूपसे अब साईफिलमें हवा भरी जाती है । तब पम्प गर्म होजाता है। गर्म होने का एक कारण रगड़ भी है। पम्प के अन्दर हशको घार २ यानेसे भीगर्मी उत्पन्न होती है इसी प्रकार सूर्यमें भी पाकर्षण शाति का केन्द्रकी तरफ दगन है । जिससे आकर्षण शक्ति गर्मी रूप से प्रकट होती जाती है और प्रकाश रोशनी या गर्मी ऊपर बताये प्रमाणसे बाहर निकलती जाती है। लाखों करोड़ों वर्ष ध्यतीत होनेपर भी कमी नहीं होती है और न भविष्यमें होगी। क्यों कि जितना व्यय है उतनी ही बामदनी श्राकर्षण शक्ति के दबान्न से चालू है।
(सौ. प० अ०५ मारांश बोलो मीटर यन्त्र और ताप क्रम प्रकाश थोड़े परिणाम में होता है तो उसका रंग लाल होता है जैसे अग्निका। बिजली की बत्ती में ज्यों ज्यों प्रकाशका परिणाम बढ़ता जायगा त्यो त्यों रंग बदलता जायगा और गर्मी अधिक आती जायगी । प्रकाशमें अधिक गर्मी आनेपर श्वेतप्रकाश बन जाता है। लाल, नारंगी. पीत. हरिन आदि अनेक रंगों के सम्मिश्रणसे श्वेत रंग बनता है। प्रक रामें रंगके तारतम्यसे प्रकाश का सापक्रम मापा जाताहै। इस प्रकार म.पनेके यन्त्रका नाम बोला मीटर रखा गया है। इस का प्रथम शोध-अमेरिका निवासी ऐसपी लेंडलीने की है । इस यन्त्रसे प्रकाश को गर्मी रूपमें परिवर्तित किया