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नीचे जाय तो मनुष्य, पशु, पक्षी श्रादि मर जाते हैं। ठण्डे देश में जन्मे हुये मनुष्य अधिक गर्मी सहन न कर सकने से गर्म देश में नहीं रह सकते रहते हैं तो मर भी जाते हैं। इसी प्रकार गर्म देश में जन्मे हुये ठडे देश में अधिक शरदी सहन नहीं कर सकते। बीमार हो जाते और मर भी जाते हैं। यही बात पशु पक्षियों के लिये भी है । कहिये मनुष्य आदि प्राणियों को जिलाने या मारने की शक्ति ईश्वर में है या वतावरण और सूर्य में ईश्वर शरीर रहित और वजन रहित होने से उसमें गर्मी भी नहीं है और आकर्षण शक्ति भी नहीं है। यदि यह कहो कि सूर्य और वातावरण को ईश्वर ने हो बनाया है तो यह ठीक नहीं है क्योंकि जो शक्ति गर्मी और स्वयं में नहीं है को दूसरों को कैसे दे सकता है। यदि ईश्वरमें भी गर्मी और आकर्षण माने जांय तो वह सर्व व्यापक होनेसे सर्वत्र गर्मी या शरदी समान रूप से होनी चाहिये। मगर ऐसा नहीं है। यन्त्रादि के द्वारा जो तापक्रम का माप किया जाता है उसका अन्य व्यक्ति नहीं होता अतः ईश्वर में उसकी कारणता किसी प्रकार सिद्ध नहीं होती । कारणता की यथार्थ खोज वैज्ञानिकोंने प्रत्यक्ष सिद्ध करके दिखा दिया है। ईश्वर वादियों ने विचार शून्य कल्पना पर अन्ध श्रद्धा रख करके बाद विवाद में निरर्थक समय व्यतीत किया है । श्रस्तु । 'गनं न शोचामि' (सौं० प० ० ५ सारांश)
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जल और वायु की शक्ति
वायुसे कई स्थानों पर पवन चक्की चलती है। कूपका पानी ऊपर चढ़ाया जाता है। वाहन पर धा बांध कर के जरिये इष्ट दिशा की तरफ समुद्र में जहाज चलाया जा सकता है। जल प्रपात से भी पवन चक्की चलती हैं। अमेरिका के सुप्रसिद्ध जल प्रपात से बिजली की बड़ी बड़ी मशीनें चलाई जाती हैं। नायगरा