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गुण है। ऐसी अवस्था में विज्ञान के भीतर ईश्वरवाद की गंध खोजना भ्रम मात्र है।
सृष्टिकी आयु संसारके सबसे बड़े वैज्ञानिक आइन्स्टाइन" ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह सूर्य असंख्य वर्षोंसे इसी रूपमें चला आ रहा है । तथा आगे भी असंख्य वर्षों तक इसी रूपमें वर्तमान रहेगा । हैकल जैसे वैज्ञानिक लोगों ने इसीलिये स्पष्ट शब्दों में इस संसारके नित्य होनेकी घोषणा की ।
पंचभूत कल्पना वर्तमान विज्ञानने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि वैशेषिक श्रादिकी पंचभूत कल्पना मिथ्या कल्पना है । वास्तव में मूल तत्व एक ही है शेष सब उसके प्रकार हैं। इस विषयके वैज्ञानिक प्रमाण ऊपर दिये हैं। वास्तवमें चैदिक साहित्यमें भी पंचभूतोंकी कल्पना नहीं है ।" भृष्टिवाद और ईश्वर' नामक पुस्तकमें वैज्ञानिक प्रमाण निम्न प्रकारसे दिये हैं
तथा जैनशास्त्रानुसार भी मूल प्रकृति जिसे पुद्गल कहते हैं एक ही प्रकारकी है. अर्थात् अग्नि, जल, वायु, पृथिवी श्रादिके पृथक पृथक परमाणु नहीं है । अपितु ये सब एक ही मूल पदार्थ के विकार हैं। वैदिक दर्शनोंका भी पूर्व समयमें ऐसा ही सिद्धान्त था । वैदिक साहित्यमें प्रत्यक्ष ही इन महाभूतोंकी उत्पत्ति एक ही पदार्थ से लिखी है। हम इसका वर्णन क्रमशः करते हैं। गाना रहस्यमें विश्वकी रचना और संहार प्रकरण में इस बातको भली भांति सिद्ध किया है कि यह पर्चीकरण" पांच भूतोंकी कल्पना प्राचीन शास्त्रों में नहीं है। अपितु वहां तो त्रिवृत्तकी कल्पना है,