________________
अर्थान् यहां तीन मत ही माने गये हैं। (१) अग्नि (तेज) () श्राप (पानी) (३) अन्न अर्थात पृथ्वी । छान्दोग्योपनिषद् में इसका स्पष्ट वर्णन है । छान्दो० (६२।६) । इसी प्रकार वेदान्तसूत्र में भी पांच महामत नहीं माने अपितु यहीं माने हैं। गांना रहस्य धृ० १८ ।
४ भूत भारत वर्ष में एक चार्गक मत था जो नास्तिक मन के नाम से प्रसिद्ध था | उसके आचार्य चार्वाक थे। वे दुर्योधन के सस्था थे। उन्होंने चार ही भूतों का माना है. आकाश को नहीं माना। इसी प्रकार ग्रीक लोग भी चार ही भूत मानने है।।
एक तत्व वास्तवमें यदि देखा जाय तो वैदिक साहित्यमें एक तत्व मान्य है । तैतिरियोपनिषद् में स्पष्ट लिखा है कि, प्रात्मनः, आकाशः. सम्भूना आकशाद्वायु । और वायु से अग्नि और अग्नि से जल तथा जल से पृथिवी उत्पन्न हुई है। (२१) तथा च ऋग्वेद में हम देखते हैं कि इसके विषय में भिन्न २ मत दिये हैं। यथा-नेवानां पूर्वे युगेऽसतः सदजायत । ऋ१० । १२ । ७ । __अर्थान-नेवताओं से भी पूर्व असत से सत् उत्पन्न हुआ। यहां असतका अर्थ अव्यक्त किया जाता है । तथा च-एक सन्तं बहुधा कल्पयन्ति । ऋ० १ । ११४ । ५।
अर्थात् एक मूल कारणको अनेक नामोंसे कल्पित किया गया है । तथा च लिखा है कि पहले श्राप" (पानी । था। उससे यह सृष्टि उत्पन्न हुई । इसी प्रकार कहीं आकाशको ही मूल सत्व लिखा है छान्दो, ( १ | 8 ) तथा च इन सत्र का खण्डन. नासदीय सूक्त में कर दिया है। यह सब सू० ऋ० १०.१२६ । में है