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घज्ञानिक कहते हैं कि इस पृथ्वी के सब जीवों को जीवनी शक्ति देने वाला सूर्य ही है। यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि सूर्य की रश्मियों से ही रासायनिक परिवर्तन होता है जिसके जरिये से छोटे छोटे तृण से लेकर बड़े बड़े वृक्ष पर्यन्त सत्र वनस्पते हरी भरी रहती है । हरिण, शशक आदि पशुओं का जीवन भी इन्ही उद्भिन्न पदार्थों पर अवलम्बित है।
इसी सूर्य के प्रकाश से वाष्प बनता है और वर्षा होती है। वर्षा से कई उद्भिज्ज्ञ पदार्थों और बलले फिरते प्राणियोंकी उत्पति होती है. यह बात किलोमे छिपी नहीं है । दक्षिण ध्रुव और उत्तर ध्रव की तरफ यात्रा करने वाले कहते हैं कि दोनों ध्र बों पर प्राण वनस्पति या वृक्षका नामोनिशान नहीं है। यह स्थान जीवन शून्य है। इसका कारण यह है कि वहां सूर्य का प्रकाश बहुन कम है। सूर्य की शक्ति के प्रभाव से वह प्रदेश प्राणी और वनस्पति से शून्य है। यहां ईश्वरवादियों से पूछना चाहिये कि ईश्वर तो सर्य ध्यापक है--ध्रुव प्रदेश पर भो उसकी शक्ति रही हुई है वैसी अवस्था में यहां वृक्षादि की सृष्टि क्यों नहीं होती ? इसका उत्तर उनके पास नहीं है. जय कि वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा ऊपर कर दिया है।
सूर्यताप और विद्य त् धारा अलग अलग दो धातु के सलीये सूर्षके नाप में इस प्रकार रक्त्रे जायें कि उनमें से एक जोडा गम हो और दूसरा टएडा रहे तो उस कक्षा में विद्युतधारा होने लगती है। इस धातु के योग को 'ताप विद्युन्युग्म' Tsermo-Couple कहा जाना है ।
एक विशेष प्रकार का कांच जिसे एकीकरणताल ( Lens Condensing) कहते हैं उसे सूर्यकी कक्षामें रखने से ताप इतना