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( ७२० ) और शरीरके नष्ट होनेपर जहाँसे आये थे वापिस चले जाते हैं । ____पापले गुमले गुण रहे हुये अरस्तू लोगों को समझाया करता कि बुद्धिमान् को मृत्यु से भय भीत नही होना चाहिये किन्तु उसे अपनेको अमर समझकर कार्य करना चाहिये तभी सफलता प्राप्त कर सकता है।
ऐपी क्यूरस ( Empicurus ) इसकी शिक्षा का सार था कि मनुष्य को प्रसन्नता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिये।" खाश्रो पीओ और खुश रहो।
३४२ के ईसा से पूर्व भौतिक विज्ञान मनुष्यको अन्ध विश्वास बचाने के लिये है, जगत् की अन्य वस्तुओं की तरह मनुष्य भी ( सजीव ) प्राकृतिक अशुओंका एक समुदाय है। अर्थात् प्रत्येक जीव सूक्ष्म प्राकृतिक परमाणुओंसे बना हुआ है और गिलाफरूप शरीर स्थूल अणुओंका संधान है । शरीर और आत्मा दोनों मरण धर्मा है और एकसमय नष्ट होजायेंगे | उसका मन्तव्य था कि मूर्ख ही मृत्यु की खोज करते हैं परन्तु मृत्यु से डरना भी मूर्खता ही है मृत्यु प्राने पर शरीर अथवा जीय दोनों में से एक भी बाकी नहीं रहते ।
"ऐपीक्यूरस" की शिक्षा यूरोपमें बहुन फली और प्रकृतिवाद के विस्तार में उससे अच्छी सहायता मिली।
उसी शिक्षाके विस्तारका कारण यह भी कहा जाता है, कि "त्यूक्रटियस" ( Lucrstious ) एक प्रसिद्ध कवि ने उस की शिक्षाओंको छदबद्ध करके अपनी पुस्तक "डिरोमनैचर" (DeRerumnature) द्वारा विस्तृन किया था।
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* Greeak thinker by Dr. Gompery Vol. IV4 English Translation P. 209