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आपने जो दूसरा प्रमाण (Charles Jhonston) का दिया है वह भी आपका उल्टा घातक है । वह तो जैनियों के उत्सर्पिणी और aafar raat स्थापना करता है। जैसा कि दिन के पश्चात रात्रि आती है और रात्रिके पश्चात् फिर दिन इसी तरह सर्पिणी और अवसर्पिणी का या अनादिवशी
अनन्तकाल तक चलता रहता है।
इसी प्रकार लोसरा प्रमाण देकर तो आपने कमाल हो कर दिया कौन नहीं जानता कि "कांट" विज्ञानवादी नहीं था। किन्तु वह तो एक अद्वैतवादी फिलोसफर था ।
अ लीजिये आधुनिक विज्ञान जिससे आपके सृष्टिकर्ताबाद का पूर्णतया खण्डन होता है । Hackel अपनी किताब The riddle of the universe में पृष्ठ रहद पर फरमाते हैं
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(2) The duration of the world is equally infinite and unbounded, it has no beginning and no end, it is no eternity (3) substance is everywhere and always in uninterrupted movement and transformation nowhere is there perfect repose and rigidity, yet the infinite quantity of matter and of eternally changing force remains constant.
अर्थात् यह विश्व भी अनादि और अनन्त है, इसका न कोई आरम्भ हैन अन्त यह सनातन है, जगत द्रव्य से परिपूर्ण हैं जो सदर रहिन परिणमनशील है। जगतमें कहीं पर भी सर्वथा निष्क्रियपन अथवा कूटस्थता नहीं है पुद्गलकी अनन्त मिकदार और उसकी सदा परिणमनशील शक्ति सदेव एकसी रहती है ।