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छिपी रहती है एंजन से गति रूपमें प्रकट होती है। जितनी शक्ति इस विश्व में हैं उतनी ही रहती है न घटती है नयढ़ती है। अब प्रश्न उठता है कि सूर्यमें इतनी शक्ति कहां से आती है कि करोड़ों वर्षों लगातार जनक गर्मी और मात्रा मे रहा है। यह तो प्रत्यक्ष है कि इसे शक्ति कहीं से बराबर मिला करती है क्योंकि यदि यह अपनी आदि शक्ति को ही व्यय किया
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करता तो २-३ हजार वर्ष से अधिक न चमक सकता । यह बात भौतिक विज्ञान के वाले ठण्डा होने वाले नियम से तुरंत सिद्ध की जासकती है। एक वैज्ञानिक ने इस सिद्धान्तका प्रचार करना चाहा था कि सूर्य उल्काओं के बराबर गिरने से गरम रहता है इस सिद्धान्तको कोई भी नहीं मान सकता। क्योंकि ऐसी अवस्था में बल्काओं की मूसलाधार वर्षों होनी चाहिये परन्तु गणना करने से पता चला है कि यदि उल्काएं इतनी अधिक होती तो पृथिवी पर भी वर्तमानकी अपेक्षा करोड़ों गुणो अधिक सल्काएं गिरती । जर्मन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक "हेल्म होल्टस" ने सन् १८४४ में बताया कि सूर्य अपने ही आकर्षण के कारण दवा जारहा है । दवनेसे गरमो उत्पन्न होती है। सूर्य की नोल और नाप पर ध्यान रखते हुये इस यातको देखकर कि इससे कितनी गरमी आती है अनुमान किया गया है कि यदि इसका व्यास प्रति वर्ष २४० फुट घट जाय तो यह ठण्डा नहीं होने पावेगा । ४० फुट घटनेका अन्तर इतना कम क बड़े से बड़े दुरबीन यन्त्र से भी सूर्य के व्यास का अन्तर १० हजार वर्ष से पहिले नहीं चल सकता। परन्तु सर्क से जान पड़ता है कि यह सिद्धांत भी ठीक नहीं है। क्योंकि हिसाब लगानेसे यह सिद्ध होता है कि ऐसी अवस्था में सूर्य और पृथिवी की श्रायु २-३ करोड़ वर्षकी माननी पड़ेगी परन्तु पृथिवी इससे बहुत पुरानी है यह सिद्ध हो चुका है। अतः जान पड़ता है कि सूर्य में गरमी