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अधिक है । और जो पनका लोभी हो विषयवासनामें लिप्त हो तो राजसी । रजोगुण ) के लक्षण समझना चाहिये "विषयोपसेवा चाजल रासस गुणलक्षणं' "रजमा उस्यते ।" लोग र रजोगुणी जीव किन किन योनियोको प्राप्त करता है. उसके बारेमें लिखा है।
हस्तिच तुरंमाश्च शुद्रा म्लेच्छाश्च गहिता । रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसी सुसमा मती ॥"
अर्थात्-तामस स्वभाव वाले कछुमा, हाथी, घोड़ा. सांप, शूद्र, म्लेच्छ आदि तथा राक्षस. मांसाहारी, शराबी, डाकू, चार आदि नीच योनियों में जाता है तथा गृतपान प्रसक्ताश्च जघन्या राजसीगती ।" अर्थात्-जुएमें रत तथा व्यभिचारी व शराबी आदि के कुलोंमें शराबी जाता है, आदि आदि ।
स्वामीजी ने भी सत्यार्थप्रकाश में इन प्रमाणों को उद्धृत किया है और स्वामीजीके कथनानुसार परमात्मा जीवोंकी भलाई लिये काँका फल देता है, तो वह इन जीवोंको ऐसी जगह क्यों मेजता है जहाँ जाकर यह जीव अधिक बिगड़ता है । यथाजो कामी था शराबी था मांसाहारी चोर डाकू था उसको सांप. कछुया, सूअर, चांडाल आदि म्लेच्छ जंगली जाति राक्षस पिशाच श्रादि महापापी लोगोके कुलमें क्यों उत्पन्न किया ? क्योंकि कहाँ बजाय सुधरनेके और भयानक पाय करनेका श्रादी हो जाता है। उसके रिश्तेदार पड़ोसी सम्बन्धी जाति वाल सत्र इन पापोंके कारने में सहायक होते हैं. उसको उत्साहित करते हैं । उस कुल में जो ऐसा नहीं करता है उसका कायर. बुजदिल कुलफलंक
आदि कार कर धिक्कारत हैं और उसे पाप करनेके लिये विवश करते हैं। बस, इससे यह सिद्ध हुआ कि परमात्मा जीकी