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( ६६७ ) बाईथिलको ईश्वरको बनाई हुई मानते हैं। उनके लिये वेद का ब्रह्म से उत्पन्न न होना मानना युक्ति संगत नहीं है। 'जगत् के कर्या ने विविध नामोंसे प्रकट होकर विभिन्न देशों में देश-काल और पात्रके भेदसे अलग अलग धर्मका उपदेश किया है. इस पर जो लोग विश्वास करते हैं. क्या वे विविध देशोंके सृष्टितत्व विषयक मतों में
जो भेद पड़ गया है उसका निर्णय कर सकते हैं ? (भगवद्गीताकी समालोचना-अनुगोपालचन्द वेदांत शास्त्री०१८)
सारांश यह है कि, इस जगतका कर्ता हा कोई ईश्वर विशेष नहीं है । क्योकि प्रथम तो जगतका कार्यत्व ही प्रसिद्ध है, क्योंकि कार्यके लक्षण ही जगतमें नहीं घटते । यदि कार्यका लक्षण प्रागभाव प्रतियोगित्वम् ऐसा करें तब तो चाँद व सूर्य आदिका कभी अभाव था यह प्रसिद्ध है इसलिए यह लक्षण उसमें नहीं घटता । तथा वेदने स्वयं इसका स्पष्ट शब्दों में विरोध किया है। जिनके प्रमाण हम पहले लिख चुके हैं । वर्तमान विमानने भी यह सिद्ध कर दिया है कि इनका न कभी अभाव था और न कभी अभाव होगा यह भी विज्ञान प्रकरण में हम लिख चुके हैं । इसी प्रकार मीमांसा दर्शनके भी हम उन प्रमाणोंको लिख चुके हैं। सृष्टि रचना तथा प्रलयका जिन प्रपल युक्तियोंसे खण्डन किया है। पाठक 'मीमांसा' प्रकरणमें देख सकते हैं । अतः यह लक्षण तो कार्यत्वका जगतमें घटता नहीं है।
श्री सम्पूर्णानन्दजी और ईश्वर यह बहुत पुराना और व्यापक विश्वास है कि इस जगत का कोई कर्ता है, किसी ने बनाया है। देख ही पड़ता है कि बहुत सी बाधाओं के रहते हुये भी मनुष्य जी रहा है. पशु पक्षी जी रहे हैं, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र, पहाइ, समुद्र, सभी बने हुये हैं, अतः