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यकी में पिस रहे हैं पर जो भगवान कभी खम्भे फाड़कर निकला करते थे और कोसों तक चीर बढ़ाया करते थे, वह आज उस कल्लाको भूल गये, गौः अनन्त सुख भोग रहे हैं। कि. भी उनके कामकी लकड़ी दीन दुखियोंको थमाई जाती है। जो लोग ऐसा उपदेश देते हैं वह खूब जानते हैं कि अशान्तोंको काबू में रखनेका इससे अच्छा दूसरा उपाय नहीं है।
ईश्वरने विभिन्न मतानुयायियोंको विभिन्न उपदेश दे रखे हैं। आगजनक होकर भी बलि और कुरवानी से प्रसन्न होता है । एक पोर विश्वेश्वर बनता है. दूसरी ओर विधर्मियोंको और कभी-- कभी स्व धर्मियों को भी मार डालने तकका उपदेश देता है। एक ही अपराधके लिये अलग-अलग लोगों को दण्ड देता है, और एक ही सत्कर्म के पुरस्कार भी अलग अलग देता है । अपने भक्तोंके लिये कानूनकी पोथीको बैठनमें बन्द करके रख देता है।
प्रायः सभी सम्प्रदायों का यह विश्वास है कि उनको सीधे ईश्वर से श्रादेश मिला है. पर हिन्दू का ईश्वर एक बात कहता है। मुसलमानका दूसरी और ईसाईका तीसरी । इटिलीकी सेनां श्रीसीनिया पर आक्रमण करती है, और उभय पक्ष ईश्वर, ईसा श्रीस ईसा की माता से विजय की प्रार्थना करते हैं ।
(समाजवाद पृष्ठ १५-१८. ११) ईश्वर के विषय में महात्मा गान्धी का अभिप्राय-ईश्वर है भी और नहीं भी है। मूल अर्थ से ईश्वर नहीं है। सम्पूर्ण ज्ञान है। भक्ति का सच्चा अर्थ आत्मा का शोध ही है। आत्मा को जब अपनी पहिचान होती है, तब भक्ति नहीं रहती फिर वहां ज्ञान प्रगट होता है।
नरसी मेहता इत्यादिने ऐसी ही आत्माकी भक्ति की है। कृष्ण राम इत्यादिक अवतार थे. परन्तु हम भी अधिक पुण्य से वैसे हो