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साथ सूक्ष्म शरीर के रूप में मिलजात है तब कुछ समय बीत जाने पर अपने स्वभाव ( तासीर प्रकृति ) के अनुसार अच्छा बुरा फल देना शुरू करते हैं। जिस कर्म की जितनी लम्बी स्थिति (मियाद ) होती है. वह कर्मी के अनुसार कुछ समय पीछे उदय होता है जिसकी स्थिति थोड़ी होती है वह जल्दी फल देने लगता है । *
जैस दूध, चावल, गन्ना, सन्तरा आदि हलके पदार्थ खावें तो वे जल्दी पच कर रस बन जाते हैं. और यदि कला, चाटी, बादाम आदि भारी गरिष्ठ चीजें खावें तो वे देर में पचते हैं और उनका रस दर से बनता है इसी के अनुसार लम्बी मियाद वाले देर से उदय में आते हैं, थोड़ी मियाद वाले कर्म जल्दी फल देने लगते हैं ।
संसार में बहुतसे पापी जीव घोर पाप करते हुये भी सुखी दीख पड़ते हैं, रात दिन व्यभिचार करने वाले भी वेश्याएं दुखी नहीं देखी जाती इसका कारण यही है कि अनेक कमाये हुये पाप कमि बुरा दुखदायी फल देने की शक्ति बहुत ज्यादा लम्बे समय लककी पड़ी है इस लिये उन पाप कर्मों का फल भी जरा देर से मिलेगा संभव है वह इस जन्म के पीछे दूसरे जन्म में मिले ।
जो जांब दलका पुण्य-पाप करते हैं उनके कम । ये कर्मोन थोड़ी मिड़ पड़ती है तदनुसार व उदय भी जल्दी हो आते हैं यानी— जल्दी फल मिल जाता है ।
फल देने के पीछे
फल देने के पीछे कारण स्कन्ध निःस्मार हो जाते हैं उन में
एक कोड़ा कोड़ी सागर ( असंख्य वर्षो ) का स्थिति वाला कर्म एक सौ वर्ष पीछे फल देगे योग्य होता है |