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और शक्तियां किं तू इस तरह बुला लेगा वे तेरे चारों ओर से घिर आवेगी और तेरे लिये एक नया शरीर बनकर के अपने तोष और पोषण के लिये तुझे तंग करेंगी |
और अमर इस कल को सूक्ष्म नहीं दूर कर सके तो तब भी नहीं दूर कर सकेगा। बल्कि तुम इस लिये फिरना पड़ेगा । इसलिये सचेन रहो कि यह और आनन्दका महल भनने के बदले यह तेरी कबर या कैखाना न धनजावे |
ओर क्या नहीं देखता है कि बिना मरे त मौत को कभी नहीं जीत सक्ता है- क्योंकि इन्द्रियों के भांग की चीजों का दास हो जानेसे तू ऐस शरीर धारण करलेता है कि जिसका तू मालिक नहीं रहता इसलिये अगर यह शरीर नष्ट नहीं कर दिया जाये तो मनो तू जातेजी कर केंद्र होजावेग । परन्तु अब इस कबर मैं से कष्ट और दुःख से ही तेरा खुस्कारा हो सकेगा। और इस कष्ट के अनुभव ( तजुरवे ) से ही तू अपने लिये एक नया और उत्तमतर शरीर बनालेगा। और यही बहुत बार होते २ तेरे पर निकल आवेंगे और तेरे मांस ( के शरीर ) में सब देवी और आसुरी शक्तियां भर जावेंगी ।
और जो शरीर कि मैंने धारण किये थे उसके सामने तब गये और मेरे लिये सके अंगारे के कमरबंद की तरह थे परन्तु मैंने उनको अलग फेंक दिया। और जो कष्ट कि मैंने एक शरीर में सह आगे के शरीर में काम में लाने के लिये शक्तियां बन गये ।
५२. ये बड़ी सिद्धान्त की बातें हैं और विशाल रीति से लिखी गई हैं और जैसे पूरब में कि इन बातों को सदा मानते आये हैं और अब भी मानते हैं वैसे ही पच्छम के देशों में भी एक दिन लोग इनको मानने लगेंगे।