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( ६५८ ) उन लोगोंको तो बहुत बुरी लगेगी जो बुद्धि या शीलमें मन्द और जिनमें साहस ( हिम्मन ) नहीं है। परन्तु ऐसे वीर लोगोंको जो क्या मनुष्य क्या देव किसीसे दान पुरय लेनेकी लालसा हो रखते और केवल अपने पुरुषार्थ और परिश्रमसे धीरजके साथ कमाई करने पर भरोसा रखते हैं. ऐसे सिद्धान्त से अत्यन्त प्रसन्नता और उत्साह होता है।
५४-ऐडवर्ड कारपिटर साहबने अपनी पुस्तक प्रजातंत्रराज्य' में "शैतान और कालके मर्म के प्रसंगमें इस सिद्धान्त को यों भली भांति दरसाया है । सृष्टिरचना की विद्या और सब विद्याश्रय की भांति ( तरह ) सीखनेसे हो पाती है. बहुत से| वर्षोंमें धीरे २ तु अपने शरीरको बनाता है और इस आज कल के शरीरको बनाने का सामर्थ्य जैसा कुछ कि तुझमें अभी है इसको तूने पिछले समयमें दूसर शरीरोंमें प्राप्त ( हासिल ) किया था. जो सामय तुझको अब प्राप्त है, उसे तू अागे काममें लावेगा । परन्तु शरीर बनाने के सामर्थ्य में सत्र सामन्य शामिल हैं। जिन • चीजों की तुम चाहना करो उनको छांटने में सावधानी रखा. मैं यह नहीं कहता कि किस चीज की चाह करना चाहिये । क्योंकि अगर काई सिपाही लड़ाई पर जाता है तो वह ग्रह नहीं देखना कि कौन सी नई चीज में अपनी पीठ पर लसकता हूँ बल्कि यह देखता है कि किस चीज को मैं पीछे छोड़ सकंगा। इसलिये उसे मालूम है कि जो कोई नई चीज में अपने साथ ऐसी लेजाऊंगा कि भलिभांति चल न सके और काम में न अरसके वह मेरे लिये जंजाल कहा जावेगी।
इसलिये अगर तुझे अपने लिये यश (न:मबरी) या सुख चन की चाह है तो जो बात चाहेगा उसकी शकल तुझ पर आचढ़ेगी और तुम पर उसके लिये २ फिरना पड़ेगा और जो शकलें