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जन्म में इससे उसके सिर का भेजा उस चाल का बन जाता है. जिस को अपराधी कहते हैं और जब बच्चा ऐसे अधम औजार । को लेकर संसार में पैदा होता है तो वह चाहे जितना यत्न करे उसमें से प्रायः एक भी शुद्ध और मधुर स्वर नहीं निकल सकता। इस शरीर में यह मन की किरण (जीवात्मा ) जन्म भर मन्द, बिखरी हुई और काम के बादलों में ताफती रहेगी। यद्यपि देशकाल उल्टा रहंगा तो भी कमी २ उस किरण को चमक की झलक उसके स्थूल शरीर में कुछ न कुछ उजैला और सुधार कर देगी
और बड़े कष्ट और परिश्रमसे बिरले अवसर ऐसे भी मिल जायेंगे कि वह अपनी नीच प्रकृतिको दवा लेगा और धीरे २ कटके साथ एक दो कदम आगे बढ़ ही जावेगा । परंतु जन्म भर पीछे (बुरे) संस्कार सर्वोपरि प्रबल बने रहेंगे और जो पापका प्याला पिछले जन्म में उन दिनों भरा गया था जिनका अब याद भी नहीं रही है उसकी बूंद २ कांपने हुए होंठोंसे चूसना पड़ेगा। .५२- दूसरी प्रकार का मनुष्य लगातार एसे विचार चित्र पैदा करता रहता है जैसे कि परमार्थ और दूसरों की सहायता की इच्छा. दूसरों की भलाई के लिए प्रेम भरी युक्तियां या बालसायें। ये चित्र उसके इर्द गिर्द झुण्ड के झुएड मंडलाते रहते हैं
और फिर उसी पर अपना असर डालने लगते हैं और इससे वह स्वभाव परमार्थी हो जाता है और दूसरों की भलाई को अपने स्वार्थ से बढ़ कर मानने लगता है और इस प्रकार जब वह मरता है तो उसके स्वभाव में परोपकार रह जाता है और यों अंतकाल तक उसकी प्रकृति में परोपकारी भात्र रम जाता है । जब यह फिर जन्म लेता है तब उसके पहले जन्म के गुणों का दरसाने वाला वासना शरीर ऐसे कुज में खिच आता है कि जहाँ उसको पेसी शुद्ध स्थूल सामिग्री मिल सके कि जो उच्च मन के