________________
(६५५ )
विचार करने वाले दिवारके विका
"
उस तेज में जो उसके शरीरके घास पास घिरा हुआ रहता है. ) बने रहते हैं और जैसे ये गिनती में बढ़ते जाते हैं वैसे ही इनका असर उस पर अधिक से अधिक बढ़ता जाता है। जो विचार बार बार किये जाते हैं उनके चित्र अलग नहीं बनते किन्तु पुराने उनसे चित्र दिन २ अधिक प्रबल बनते जाते हैं यहां तक कि बढ़ते बढ़ते किसी विचार चित्रकर उसके मन पर इतना अधिकार हो जाता है कि जब कभी ऐसे विचारका अवसर आता है, तब वह छानबीन नहीं करता किन्तु उसे सहज ही अंगीकार कर लेता है और ऐसे विचार संच से आदत पड़ जाती है । यों सुभाव बन जाता है और हमारा परिचय किसी ऐसे मनुष्यसे हो जिसका सुभाव परिपक्क ही गया हो तो हम प्रायः निश्चय कह सकते हैं कि यदि ऐसा ऐसा देशकाल हो तो उसका बर्ताव इस भांतिका होंगा।
५० -- जब मौतकी घड़ी आती है तब सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से अलग निकल आते हैं और उस स्थूल शरीर के साथ केवल लिंग शरीर धीरे धीरे बिखर जाता है। पिछले जन्मका विचारमय शरीर बना रहता है और इसमें पिछले संस्कारों के सार निकालने और उनको मिटानेको कई क्रियायें होती है। मरने के पीछे या जन्म लेनेसे पहले जो यह फेरफार होता है उसके केवल फुटकर संकेत संसारको बतलाये गये हैं और अगर किसी जिज्ञासु को सहायता न मिले तो इन फुटकर संकेतोंके सहारे ही जहां तक बन सके सम्ता टटोलना पड़ता है । परंतु इतना तो निश्चित है कि पुनर्जन्म होने के पहले यह विचारमय शरीर वासनिक लोक में आ जाता है यहां वासनिक द्रव्य लेकर नये जन्म के लिये लिंग शरीर बन जाता है। यह लिंग शरीर सांचेका काम देता है और हम सांचेके ऊपर ही स्थूल भेजा ( मस्तिष्क ) स्थूल