________________
( ५२) दजाती है कि स्थूल लोकमें जैसे पदार्थ क्रमसे गाड़े हो होकर रूप बदलते जाते हैं वैसे ही सूक्ष्म वस्तु गाड़ी हो होकर दृश्य अथवा स्थूल बन जाती है।
१ मच तो यह है कि पतले से गढ़े होने की क्रिया रात दिन सव टौर देखनमें श्र.ती है। वनस्पनि वायु मण्डल में से हवा ले होकर श्रदती हैं और उनहाय ओंको द्रव (पानीसी) तथा ठोस बना लेती हैं। अश्य अर्थात सूक्ष्ममें से मृश्य शकले बनानेसे ही प्राण शक्ति की क्रिया प्रकट होती है। और विच र क्रिया अर्थात विचार से स्थूल तक बनने की क्रिया चाहे सरची है चाहे भूठी, परन्तु उसमें ऐसी कोई बात नहीं है कि जो अनहोनी या असाधारण ही हो । वियर किया तो साक्षीके प्रमश से सिद्ध है और यहां साख { गवाही ) उन लोगों की जो विचार के चित्रों को अलग लोको में देख सकते हैं निस्संदेह उन लोगों की गवाही से जो देख नहीं सक्ते हैं अधिक प्रमाणक है। अगर सौ अंधे पुरुष किसी दृश्य वस्तु के लिये यह कहें कि वह नहीं है तो उनका कहना कम प्रमाण का होगा. उस एक पुरुप के कहने के सामने जिसको सूझता हो
और जो यह गवाही दे कि वह स्वयं उस वस्तु को देखता है। इस विषय में ब्रह्मविद्या के विद्यार्थी को धीरज रखना चाहिये क्योंकि उसको यह खबर है कि किसी के केवल न मानने से असली बातें बदल नही जाती हैं और संसार धीरे धीरे जानने लगेगा कि विचारोंके आकार वास्तव में होते हैं जैसे कि संसार कुछ दिन इसी कामको करने के पीछे अब कोई २ बातों को सभी जानने लगा है जिनको कि पिछली शतान्दी के अंत में (Mesmer) मेजमर ने प्रतिपादन किया था ।
४७-यह देखा गया है कि जो घांते ( घटनायें) होती हैं वे पहले मानसिक या काम मानसिक लोकमें शुद्ध ( काम रहित )