________________
। ६५१ ।
जिस
वस्तु की चाहना होती है उस वस्तु को चुन लेना पड़ता है और उसको बाहरी जगत में गोचर या स्थूल बना लेते हैं । *
४५ स्थूल लोक की प्रसिद्ध बातों का प्रमाण देने से हमारा पढ़ने वाला जान जायगा कि अवश्य अर्थात् सूक्ष्म कैसे दृश्य या स्थूल बन सक्ता है। मैं यह कह चुकी हूं कि मानसिक लोक से काम मानसिक में आने में और इससे वासनिक में और वासनिक से स्थूल में आने में रूप या चित्र कम धीरे गाढ़ा होता जाता है। एक कांच का पात्र लेलो जोकि देखने में रीता हो परन्तु अदृश्य हाइड्रोजन हवा और आक्सीजन हवासे भरा हुआ हो। इसमें एक चिनगारी लगने से ये दोनों हवाएँ मिलजाती हैं और पानी बन जाता है परन्तु वह होता है बायु के ! भाफ) रूपमें । कांचके पात्र को ठंडा करो तो धीरे धूएँ कीसी भाफ दिखलाई पड़ने लगती है फिर यह भाफ जम कर कांच पर बूढ़े सी बन जाती हैं. फिर यह पानी जम जाता है और ठोस बर्फ की कलमों की भिल्ली सी बन जाती है।
4
ऐसे ही जब मनकी चिनगारी चमक जाती है तो इसकी जसक से 'सूक्ष्म से अणु मिलकर एक विचार का चित्र बन जाता है, यह कुछ गाढ़ा पढ़कर काम मानसिक चित्र बन जाता है जैसे कि कांच में धूकी, सी भाफ बनी थी। यह काम मानसिक गाढ़ा होकर वासनिक चित्र बन जाता है जैसे कि पानी कांच में था। इसी तरह वासनिक से स्थूल Traा है जैसे कि बर्फ । गूढ़ तत्व विद्या का विद्यर्थी जानने लगेगा कि प्रकृति की क्रमोन्नति में सब बातें नियत क्रम से होती है और स्थूल लोक के पदार्थ जैसे हवा से द्रव और द्रव से ठोस बनते है उसीके अनुसार सूक्ष्म लोकों में भी होता है । परन्तु जिसने ब्रह्मविद्या नहीं पढ़ी है उसको यह उपमा इसलिये
नोट – ग्राल्ट ई पुस्तक की पांचवी प्रति के सफा रु में देखो ।