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जैन फिलोस फी
जिस समय बहुत से परमाणु मिल कर स्कन्धके रूप में हो जाते हैं तब उनमें खास २ पदार्थ बनने की शक्ति हो जाती है। कोई स्कंद लोहा रूप बनता हैं, कोई पत्थर के रूप कोई ना कोई पानी रूप इत्यादि भिन्न तरह के स्कन्धों में भिन्न २ तरहके पदार्थ रूप हो जानेकी शक्ति हो जाती हैं। उन ही पुद्गल स्कन्धार्म एक तरह के स्कन्ध भी होते हैं जिनमें संसारी जोषके सूक्ष्म शरीर बनने की शक्ति (खासियत होती हैं । उन स्कन्धोंको काम स्कन्ध कहते हैं ।
जीव चुम्बक की तरह से आकर्षण शक्ति (अपनी ओर कशिश करने खींचने की ताकत) मौजूद है तथा उन कामीण स्कन्धों में लोहे की तरह ज की ओर खिच जानेकी शक्ति मौजूद हैं।
लत्रनुसार संमारी जीव में मनके विचारोंसे, बोलने से अथवा शरीरकी किसी हरकतसे वह आकर्षण शक्ति हर एक समय जागृत ( हर एक रूप ) रहा करती है क्योंकि सोते जागते. उठते बैठते चलते आदि किसी भी हालत में सोचने बोलने या शरीर द्वारा कोई कार्य होने रूप यानी-मन, वचन, शरीरकी कोई न कोई हरकत अवश्य होगी अतः उस आकर्षण शक्ति ( जैन दर्शन में जिसे योग शक्ति" कहते हैं ) के द्वारा वे कार्माण स्कन्ध (कामण मेटर) आकर्षित (कशिश) होकर लिपटे रहते हैं। जैसे पानी में रक्खा हुआ लोहेक गर्म गोला अपनी ओर पानीको स्वीयता रहता है। तथा वह गोला जब तक गर्म बना रहेगा तब तक वह अपनी तरफ पानीको अवश्य स्त्रीचता रहेगा। इसी तरह संसारी जीव जब तक कांभ, अभिमान, हल, लोभ विषयवासना प्रेम. और यदि निमित्त मन वचन शरीरको हरकत (क्रिया) होती
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