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( ६६४ ) २-दर्शनावरण कर्म---यह कर्म है जो कि आत्माके दर्शन गुणोंको पूरा न प्रकट न होने दे दर्शन गुण आत्माका ज्ञानसे मिलता जुलता बहुत सूक्ष्म गुण है जो कि ज्ञानके पहिले हुआ करता है। ____जब कोई मनुष्य दृमरे मनुष्यके दर्शन गुणमें रुकावट डालता है. दूसरेकी ओर खराब करता है, अंधे मनुप्योंका मखौल उड़ाता है इत्यादि. उस समय उसके "दर्शनावरण कर्म बहुत जोर दार तैयार होता है जिस समय इनसे, उलटे अच्छे काम करता है सब उसका दर्शनावरण कर्म कमजोर होजाता है, साथ ही दर्शन गुण प्रगट होता जाता है।
३-वेदनीय कम-वह कर्म हैकि जिसके कारण जीवीको इन्द्रियों का सुख या दुख प्राप्त करने का अवसर (मौका मिलता है यानी जीवों को इस कर्म की वजह से सुख दुख मिलने वाली चीज मिलती हैं।
यह कर्म दो प्रकारका है. साता और असाता । साता वेदनीय के कारण संसारी जीव इन्द्रियोंका सुख पाते हैं । और असाता वेदनीय कर्म का फल दुख मिलना होता है। ___ यदि कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को बुरे विचार से मारे पोटे दुख देवे. मलाये रउज पैदा करावे अथवा खुद अाप ही अपने आपको बुरे भाव से दुख दे, रोवे, शोक करं, फांसी लगा ले अन्य तरहसे अात्म हत्या (खुदकशी ) करले इत्यादि, तो उसके इस प्रकारके कामोंसे असाता वेदनीय कर्म बनता है जो कि अपने समय पर दुख पैदा करता है ।।
यदि कोई पुरुष दूसरों का उपकार करे अन्य जीवों के दुख हदानेका उद्योग करे.. शान्तिसे अपने दुःखीको सहे. दया करे आदि । यानी-अपने आपको तथा दुसरे जीवाको सेवा भायसे