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रहेगी तब तक जीव कार्माण कन्धों को अपनी ओर बराबर खींचता रहेगा और त्रे ग्विधे हुए कार्माण स्कन्ध उस जीव के साथ एकमेक होते रहेंगे। ___जीवके साथ दूध पानीकी तरह एकमेक रूपसे मिला हुआ बह कार्माण स्कन्ध ही जीवके ज्ञान. सुख, शान्ति प्रादि गुणों को मैला करता रहता है, जोयको स्वतन्त्रता छोनकर उसको पराधीन अना देना है। और जीवको अनेक तरहके नाच मचाना रहता है। उसी कर्माण स्कन्ध को कर्म कहने हैं भाग्य. तकदीर. देव आदि सब उसीके दूसरे नाम हैं। ___जैसे ग्रामोफोनके रकाईमें गाने वाले की ध्वनि (आवाज) ज्यों की त्यों समा जाती है ठीक उसी तरह जीवके साथ मिलने वाले उन कामीण स्कन्धोंमें भी जीवको मन, बचन, शरीरसे होने वाली अली बुरी क्रिया (हरकत) की छाया ज्योंकी त्यों अंकित हो जाती है । जीव यदि अपने मनसे. बोलनेसे या शर से कोई अच्छी क्रिया कर रहा है तो उस समयके प्राकर्षित (कशश) हुए. कामाण स्कन्धोंमें अच्छा यानी मला करनेका असर पगा और यदि उस समय उसके विचार, बचन. या शरीरका क्रिया किसी लोम. अभिमान आदिके कारण बुरी है तो उन आकर्षित होने वाले कार्माण स्कंधोंमें बुरा यानी विगाड़ करनेका असर पड़ेगा। जिस तरह रेकार्ड प्रामोफोनके ऊपर सुईकी नोकसे उसी तरह की गानेकी अावाज निकालती है जैसी कि उसमें अंकित हुई थी। ठीक इसी तरह कमका नशा समय पर जीक्के मामने उसी रूपमें प्रकट होता है जिम रूपमें जीवने उसे अपने साथ मिलाया है। पानी--जिस क्रम में अच्छा असर पड़ा है, वह जीरको श्रमको नरह प्रेरित करके अच्छा सुख कर फल देगा और जो बुरे अमर बाला कर्म जी बने अपने साथ मिलाया है वह दुखदायक साधनों की ओर जीवको प्रेरित करके दुखी बनायेगा।