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नाम त्रेता, वर्षाके यज्ञका यम द्वापर शरदकालुके यज्ञका नाम कलि पवं हेमन्त में जो बात होता था उसका नाम अभिभू था कई स्थानों पर कालिका नाम आस्कन्द और अभिभू भी मिलता है।
यथा-एष बाऽअयनमभिर्यस्कलि रेष सनिशानाधि भवति ।
शतपथ प्रा० का० ५.४१ अर्थान यह अयन या अभिभू है. सो कलि ही अभिभू है। बाप प्रलमें उपरोक्त मोंमें ही इन शब्दों का प्रयोग हुअा है.
इसलिये यह सिद्ध है कि प्राक्षम काल में भो यसमाम युगौंका प्रचार ' था । ब्राह्माण अन्योंके पश्चान् उपनिषद् काल है, परन्तु उनमें
भी इम इस युग प्रथाका अभाव ही देखते हैं। इसी प्रकार दर्शन पत्र तथा प्रसूत्र नादिकी भी अवस्था है।
महाभारत और युग एषा द्वादश साहस्त्री युगाख्या परिकीर्तिता । एतत्सहस्त्र पर्यन्तपही ब्राह्ममुदाहृतम् । महाभारत, बन पर्व अ. १८८ अर्थात् बारह हजार वर्षोंकी युग संज्ञा है। ऐसे ऐसे हजार युगोंका प्रयाका एक दिन होता है। चतुर्युगके बारह हजार वर्ष होते हैं यह कल्पना महाभारत काल ही में मिलती है। इससे यह ज्ञात होता है कि ब्राह्मण कालके पश्चात् और महाभारत ग्रन्थसे पूर्व इन युगोंकी कल्पना हुई. परन्तु उस समय इन चारों युगोंके १२ हजार वर्ष माने जाते थे। ___ बासंपूर्णानन्द जी ने आर्योंका श्रादि देश नामक पुस्तकके प्र०८८ में लिखा है--
जैसा कि हमने इस दसवें अध्यायमें लिखा है ४,३२०००वर्ष