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ही उसकी आदते बनती हैं उसीके अनुकूल वह आचरण करता है और तवनुकूल ही सुख दुःख रूपी फल भोगता है। इस प्रकार हमारे कर्म रूपी क्रियाकी अनेक स्वगत प्रति क्रियायें हैं ? जैसे दो व्यापारी एक साथ एक ही तरह की पूजी से व्यापार करते हैं परन्तु उनमें किसीको घाटा तो होता है और किसी को लाभ होता है। इसका कारण सिर्फ यही है पहलेको तो पूर्वकर्मानुसार असद्बुद्धि उत्पन्न होती है, और तदनुकूल आवरण से वह ऐसा व्यापार करता है कि उसे घाटा होता है तथा दूसरेको ऐसी सुबुद्धि उत्पन्न होती है कि उससे वह ऐसा काम करता है जिससे लाभ होता है। इसी प्रकार मानो एक आदमी जा रहा है और रास्ते में सोनेका ढेला पड़ा हुआ है। जब वह सोनेके ढलेके पास भाता है तब उसे यह बुद्धि उत्पन्न होती है कि अंधे किस तरह चलते हैं इसका अनुभव करना चाहिये भतः वह भांख बंद करके चलने लगता है। जब वह टेलेसे दूर निकल जाता है तब प्रांखें खोख लेता है, इससे सिद्ध हुआ कि अन्तराय कर्मके उदयसे अंधा बनने की बुद्धि उत्पन्न हुई। इसी प्रकार कमोंके कारणही किसोका उदार स्वभाव है किसीका प्रोछा और कोई कंजूस है कोई दानीतो कोई चिड़चिड़ा है कोई ईर्ष्यालु कोई दयालु है कोई परोपकारी है तो कोई स्वार्थी है मस्त है कोई रोता ही रहता है इस प्रकार असंख्य मनोवृत्तियां अपने २ कर्मानुसार ही होती है। जैसी मनोवृत्तियां होती हैं वैसा ही वातावरण बन जाता है और तदनुकूलही वह आत्मा सुखी दुःखी होता है इसीका नाम कमका फल है।
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स्वगत प्रतिक्रिया
इंग्लेण्ड के मनोवैज्ञानिकोंने यह जानने के लिये कि हमारे संकल्पोंका प्रभाव हमारे शरीर पर कहां तक पड़ता है प्रयत्न किया